Tuesday, March 4, 2008



रात भर आँसू से जो लिखी गई ,

सुबह उस कहानी का

सौदा हुआ !

आरजू का आरजू से रिश्ता ही क्या ,

तुम किसी के हुए मैं किसी का हुआ !

देखिये कब कोई पढने वाला मिले ,

मैं हूँ अपने ही बजूद पर लिखा हुआ ,

प्यार का वो सफर हूँ जिसको 'सागर '

एक ही बादल

मिला

वो भी बरसा हुआ !


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वो शाम फिर आ गई

जो तेरी याद दिलाती है

जो ढलते सूरज के साथ

तेरे अहसास की रौशनी लाती है

दूर हिमालय पर जब

सूरज धरती की गोद मैं समां जाता हैं

अहसास तेरा दिल को चुराकर

मेरे रोम रोम मैं समां जाता है

तू नही हैं अब

जानता हूँ पर मान न सका कभी

पल पल तू याद आती है

तुझे न भुला सका कभी

रोज आती है वो शाम

दिल पर दस्तक देती हैं

गम के बदल घिर आते है फिर

और तेरी याद आंसू बनकर बह जाती है !