Monday, March 3, 2008


प्यार की परिभाषा


प्यार को कभी भी किया नहीं जा सकता। प्यार तो अपने आप हो जाता है। दिन और रात... धरती और आसमान, एक दूसरे के बिना सब अधूरे हैं। सन -सन करती हवाएं, सुन्दर नजारे, फूलों की खुशबू ... सभी में छिपा होता है प्यार... कुछ तो प्यार में हारकर भी जीत जाते हैं, तो कुछ जीतकर भी अपना प्यार हार जाते हैं। प्यार एक ऐसा नशा है जिसमें जो डूबता है वो ही पार होता है। प्यार पर किसी का वश नहीं होता.... अगर आप भी प्यार महसूस करना चाहते हैं तो डूबिये किसी के प्यार में ... दुनिया की सबसे बड़ी नेमत है ढाई आखर का प्यार... जब आप भी किसी को चाहने लगते हैं तो उसके दूर होने पर भी आपको नजदीक होने का अहसास होने लगता है , हर चेहरे में आप उसका चेहरा ढूंढने की असफल कोशिश करते हैं, कोई पल ऐसा न गुजरता होगा जब उसका नाम आपके होठों पर न रहता हो ... यही तो होता है प्यार... सुन्दर, सुखद , निश्छल और पवित्र अहसास। पूरी दुनिया के सुख इस प्रेम में समाए हुए हैं। यह शब्द छोटा होते हुए भी सभी शब्दों में बड़ा महसूस होता है। केवल इतना सा अहसास मात्र ही आपको तरंगित कर देगा कि मैं उससे प्यार करता या करती हू

इश्क मैं इल्जाम उठाना जरुरी है !
सफ़र के बाद अफ़साने ज़रूरी हैं ना भूल पाए वो दीवाने ज़रूरी हैं
जिन आँखों में हँसी का धोखा हो उन के मोती चुराने ज़रूरी हैं
माना के तबाह किया उसने मुझे , मगर रिश्ते निबाहने ज़रूरी हैं
ज़ख़्म दिल के नासूर ना बन जाए मरहम इन पे लगाने ज़रूरी हैं
माना वो ज़िंदगी हैं मेरी लेकिन , पर दूर रहने के बहाने ज़रूरी हैं
इश्क़ बंदगी भी हो जाए, कम हैं, इश्क़ में इल्ज़ाम उठाने ज़रूरी हैं
महफ़िल में रंग ज़माने के लिए , दर्द के गीत गुन-गुनाने ज़रूरी है
रात रोशन हुई जिनसे ,सारी , सुबह वो चिराग बुझाने ज़रूरी

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जिन्दगी मौत और हम ।


जिन्दगी में क्या है तन्हा ,

जिन्दगी मौत और हम ।
दुनिया में क्या है बेवजह ,

जिन्दगी मौत और हम ।
दुनिया में क्या है बिखरा ,

जिन्दगी मौत और हम ।
दुनिया में क्या है अपना ,

जिन्दगी मौत और हम ।
दुनिया में क्या है बुरा ,

जिन्दगी मौत और हम ।
दुनिया में क्या है उलझा ,

जिन्दगी मौत और हम ।

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कुछ पन्नों को छोड के अब


कुछ पन्नों को छोड के अब मुझको लिखना होगा ।

यंकी है मुझको , तुमको जा के फिर वापस आना होगा ।।
आयेगा जब जाकर के तू , आयेगा जब जाकर के तू ,

कितना कुछ होगा जो , तुझको मुझसे केहना होगा ।
लिख लुँगा मैं अपनी बातें पन्नों पर ही सारी ,

आकर तुझको मेरी बातें पन्नों से ही सुनना होगा ।
तुझ बिन जीवन , जान बिना कैसे बीता ,

मुझको जीना और तुझको बस सुनना होगा ।
साथ रहे बरसों हम , अब दूर भी रह कर देंखें ,

दूरी आने से रिश्ता ये , गहरा और गहरा होगा ।
छुटे हुए पन्नों की बातें पास तुम्हारे जा बैठी है ,

आते में लेते आना ,पन्नों पे फिर लिखना होगा ।

hemjyotsana

इनकी और अधिक ग़ज़ल और कविता के लिए

http://hemjyotsana.wordpress.com


ग़ज़ल (1)


आँख उनसे मिली तो सजल हो गई
प्यार बढने लगा तो गजल हो गई

रोज कहते हैं आऊँगा आते नहीं
उनके आने की सुनके विकल हो गई

ख्वाब में वो जब मेरे करीब आ गये
ख्वाब में छू लिया तो कँवल हो गई

फिर मोहब्बत की तोहमत मुझ पै लगी
मुझको ऐसा लगा बेदखल हो गई

वक्त का आईना है लवों के सिफर
लव पै मैं आई तो गंगाजल हो गई

'तारा' की शाइरी किसी का दिल हो गई
खुशबुओं से तर हर्फ फसल हो गई !



ग़ज़ल (2)


मेरी आँखों में किरदार नजर आता है
रँगे फलक यार का दीदार नजर आता है

पर्वत जैसी रात कटी कैसे पूछो मत
आसमाँ फूलों का तरफदार नजर आता है

सर्द पवन पहले लगता था मुझे गुलाबी
अब तो सनका-सा फनकार नजर आता है

माँगे भीख नहीं छीनो जो चाहे ले लो
यह कहना हमको दमदार नजर आता है

तुमसे बिछड़ी भूल हो गई 'तारा' की
उनका चेहरा सपनों में हर बार नजर आता है

हृदय मिले तो मिलते रहना अच्छा है
वक्त के संग - संग चलते रहना अच्छा है

गम का दरिया अगर जिन्दगी को समझो
धार के संग - संग बहते रहना अच्छा है

खुदा मदद करता उनकी जो खुद की करते
हिम्मत से खुद बढते रहना अच्छा है

अगर विश्व है, मंदिर-मस्जिद के अधीन
नियमित मंत्रों का जपते रहना अच्छा है

ठीक नहीं नजरों का फासला 'तारा' से
चाँद अंजुरी में उगते रहना अच्छा है



ग़ज़ल (3)
भीड़ भरी सड़कें सूनी - सी लगती है
दूरी दर्पण से दुगनी सी लगती है

मेरे घर में पहले जैसा सब कुछ है
फिर भी कोई चीज गुमी सी लगती है

शब्द तुम्हीं हो मेरे गीतों , छन्दों के
गजल लिखूँ तो मुझे कमी सी लगती है

रिश्ता क्या है नहीं जानती मै तुमसे
तुम्हें देखकर पलक झुकी सी लगती है

सिवा तुम्हारे दिल नहीं छूता कोई शै
बिना तुम्हारे बीरानी सी लगती है

चाँद धरा की इश्कपरस्ती के मानिंद
मुझको दीवानी लगती है !
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अहसास
सब कुछ तो खो गया है, क्या पास रह गया है
तुम साथ हो, यह झूठा अहसास रह गया है
फिर से कभी मिलेंगे दिल तोड़कर गये जो
तो नहीं पर विश्वास रह गया है
उनका भी दोष क्या हम थे न उनके काबिल
सोचकर हमारा सब रंज बह गया है
हाथों से फिसले लम्हे, फिर किसको मिल सके हैं
जाती हवा का झोंका,चुपके से कह गया है।



।। ग़ज़ल ।।

ख़यालों का आइना


सूर्ख़ उन्वां लिए मिला काग़ज़
ख़ून से तर-ब-तर हुआ काग़ज़

दूर परदेस में था वो लेकिन
बन गया उसका राबता काग़ज़

जब न कह पाए कुछ लबे ख़ामोश
उसकी नज़रों ने फिर लिखा काग़ज़

मेरे आँगन में आके पुरवाई
ले उड़ी मेरे गीत का काग़ज़

अक्स हर सोच का पड़ा उस पर
है ख़यालों का आइना काग़ज़

बर्फ के टीले आग की दरिया
नाव काग़ज़ की नाख़ुदा काग़ज़

ज़िंदगी भर रहा कोई प्यासा
'शेरी' कोरा ही रह गया काग़ज़ !!



ज़िंदगी का निचोड़


यूँ तो हर शाम पे इक मोड़ मिला
दिल किसी से मगर न जोड़ मिला

ऐ ग़मे-यार ! हम तेरी ख़ातिर
छोड़ आये उसे, जो छोड़ मिला

हार थक कर ख़ुदा को मान लिया
मौत का जब न कोई तोड़ मिला

माँगने का भी है एक मेयार
लाख चाहा, मगर करोड़ मिला

दुश्मनों की कमी नहीं है 'ख़याल'
ज़िंदगी का यही निचोड़ मिला !



अपना घर आया


दूर से दरिया समन्‍दर सा लगा
जब करीब आया तो क़तरा सा लगा

ढूँढता फिरता था जो औरों के दाग़,
उसका ख़ुद किरदार मैला सा लगा

इस कदर मसरूफ़ राहों में रहे
अपना घर आया तो मंज़िल सा लगा

खुश्‍बुओं की क्‍या किसी से दुश्‍मनी
छू गईं जिसको वो महका सा लगा

कितनी पाक़ीज़ा ज़ुबां उसको मिली
झूठ भी बोला तो सच्‍चा सा लगा

वो हमारे शहर का सुकरात था
विष का प्‍याला जिसको अमृत सा लगा

तुम न थे तो पत्‍थरों का ढेर था
आ गए तुम तो ये घर, घर सा लगा

किसको हाले दिल सुनाते हम 'नवीन',
जो मिला, ग़म उसका अपना सा लगा !



रंग-बिरंगे लोग


कितने रंग-बिरंगे लोग
मोटे-ताज़े-चंगे लोग

झूठ-घृणा का ज़हर वमन कर
करवाते नित दंगे लोग

क्या थे क्या आज हुए क्या
बेशऊर बेढंगे लोग

बन वज़ीर कुर्सी पर बैठे
लुच्चे और लफ़ंगे लोग

किसको फुर्सत सोचे उनकी
जो हैं भूखे-नंगे लोग

जाने राम कौन-सी मंशा
खोदें रोज़ सुरंगे लोग


एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बच्चों में नई प्रेरणा का संचार करने के लिए अपनी खास शैली में डा। कलाम ने एक कविता सुनाई।

उसका एक अंश :-


वादा रहा …।

मैं संजोऊंगा वह हौसला की

सोचूंगा कुछ अलग

वैसे नहीं जैसे सब सोचा करते है


उन राहों पर जिन्होंने

अब तक नहीं देखे हैं कदमों के निशां

वह शै जिसका नाम है नामुमकिन

उसके चेहरे से घूंघट उठाऊंगा


लड़ूंगा मुसीबतों से

और पछाड़ूंगा उन्हें

कामयाब होने का हौसला होगा मुझमें


हिम्मत है जवानी की निशानी

और मैं हूं जवान

इस जवानी के बूते
इस हौसले के सहारे

मैं सतत चला रहूंगा
की मेरा देश बन छू सके

समृद्ध के शिखर।


डा एपीजे अब्दुल कलाम