Sunday, May 25, 2008
Tuesday, May 20, 2008
कैसा हो हमारा सागर प्रतियोगिता की अधिक जानकारी के लिए यंहा क्लिक करे!!!
Sunday, May 18, 2008
Saturday, May 10, 2008
Monday, May 5, 2008
Friday, April 4, 2008
रीतू नेगी
कितना मासूम होता हैं लड़कपन
सच होता हैं मन जैसे दर्पण
सबसे अलग भी उनका हठपन
अधूरा हैं जीवन इनके बिना
उनके लिए जिए वही हैं जीना
सब कुछ भी जो गया अपना छीना
बच्चे हैं जो साथ तो पास हैं नगीना
बस एक ही प्रार्थना हैं भगवान से
अपना रास्ता चुने वो सच्चाई से
भटके न कदम दुनिया की चकाचौंध से
बचाके रखे उन्हें हर आनेवाली मुश्किल से
।। कविता ।।
युएसए का प्रवासी साहित्य
तीन कविताएँ
प्रतिभा सक्सेना
वही दृष्टि
मन सम्हाले नहीं सम्हलता ,
कभी जब अपना देश बहुत दूर लगता है,
ढूँढता फिरता है उस मिट्टी की छुअन !
समझाती हूँ उसे - 'भाग मत पगले,
सारा देश देख ले यहीँ -
अय्यर, दार जी शर्मा, गुप्ता किशोर भाई, कालेल कर, बाबू मोशाय,
सब तो हैं
तमिल-तेलुगू, हिन्दी, गुरुमुखी बँगला गुजराती-मराठी ,
सुनता क्या नहीं रे !
सारा हन्दुस्तान सिमट आया यहाँ
एक ही कथा जिसके पात्र हम सब
धारे अपना वहीं वेष !'
दुर्गा लक्ष्मी और गणपति रचनेवाली देश की माटी
दीवाली, गणेश चतुर्थी, नवरात्र और हल्दी कुमकुम दे
हर बरस जता जाती
कि जीवन-मृत्यु दो छोर हैं समभाव से ग्रहण करो !
सृजन को उल्लास और विसर्जन को उत्सव बना लो-
यही है जीवन का मूल राग !
यहाँ की चकाचौंध जिसे भरमा ले
दौड़ती भागती बिखरन ही उसके हाथ आई
तृप्ति तो मुझे कहीं नज़र नहीं आई ।
इस नई दुनिया की
आँखों को चौंधियाती चमक, देखो, कितने दिन की!
पर सदियों की परखी
पुराने की अस्लियत अंततः सामने आ ही जाती है ।
यहाँ रह कर अपने उस छूटे हुये घर-द्वार की याद किसे नहीं आती?
अकेले में किसका आँख नहीं भर आती !
जीवन का जो अंश वहाँ छोड़ आये
उसकी कमी किसे नहीं सताती ।
कभी अकेले में
किसकी आँख नहीं भऱ आती !
और वही दृष्टि इन सब आँखों में देख
एक गहरा संतोष मन को आश्वस्ति से भर जाता है ।
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बुज़ुर्ग पेड़
कुछ रिश्ता है ज़रुर मेरा इन बुज़ुर्ग पेड़ों से !
देख कर ही हरिया जाती हैं आँखें,
उमग उठता है मन, वैसे ही जैसे
मायके की देहरी देख, कंठ तक उमड़ आता हो कुछ !
बाँहें फैलाये ये पुराने पेड़ पत्तियाँ हिलाते हैं हवा में,
इँगित करते हैं अँगुलियों से -
आओ न, कहाँ जा रही हो इस धूप में
थोड़ी देर कर लो विश्राम हमारी छाया में !
मेरी गति-विधियों से परिचित हैं ये,
मुझमें जो उठती हैं उन भावनाओं का समझते हैं ये !
नासापुट ग्रहण करते हैं हवाओं में घुली
गंध अपनत्व की !
एक नेह-लास बढ़ कर छा लेता है मुझे !
बहुत पुराना रिश्ता है मेरा !
इन बुज़ुर्ग पेड़ों से !
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मन का चोर !
मेरे मन में एक चोर है
जो मेरे सामने आने से घबराता है !
जब मैं उसे ढूँढने जाती हूँ
तो जाने किस कोने में
दुबक कर छिप बैठता है,
और मैं हँस पडती हूँ
स्वयं के सन्देह को झूठा मान कर !
पर भीतर ही भीतर मैं बहुत भय खाती हूँ उससे !
कहीं ऐसा न हो
कि अभी जहाँ वह मुझसे छिपता फिरता है ,
वैसे मैं ही अपने से छिपती फिरूँ !
जरा सी छूट पाते ही
वह मुझे ले डूबेगा
एकाग्रता से जोड-जोड कर जो संचित किया है
उससे वंचित कर डालेगा वह मुझे !
कोई माने या न माने
मेरे मन में एक चोर है
जो मेरे ही सामने आने से घबराता है !
गहन निराशा के अंधे क्षणों में जब जब मैं भटक गई
तीव्र विराग में हताश सी अकर्मण्य हो बैठ गई
उसने धीमे से सिर उठाया और अनायास मैं चौंक गई !
ओ मेरे पहरेदार पूरी-पूरी चौकसी रखना
प्रतिक्षण सजग करते रहना मुझे तुम !
कहीं ऐसा न हो कि पाँसा पलट जाये और वह मुझे ही लूट ले !
कोई जाने या न जाने मै जानती हूँ
मेरे मन में एक चोर है
जो मेरे ही सामने आने से घबराता है !
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प्रतिभा सक्सेना
फ़ोल्सम, केलिफ़ोर्निया, यू.एस.ए.
Tuesday, March 25, 2008
Sunday, March 9, 2008
हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय की और अधिक जानकारी के लिए !
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Saturday, March 8, 2008
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आए सामने तेरा चेहरा
तुम क्या गई हो ज़िंदगी से
हो गया हूँ और भी तनहा
तुम्हारी वो हँसी
वो पहली मुलाकात
मुस्कान छोड़ जाती है !
तुम्हारी बातों के वाना
दिल में अब तक मचला करते हैं
क्यों दिल की बात न कह सके
अपने आप से शिकायत करते हैं !
बेवफाई का दाग तुम्हे देके
अपने आप को बचाना चाहते हैं
लफ्जों के बानों से हा
ममोहोब्बत इन्तेहा जताना चाहतें हैं !
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पर अब आंखो में सिर्फ़ नफरत उभरना
अब नहीं करता हूँ मैं तुझसे प्यारा
नहीं बन न चाहता हूँ मैं तेरा यारा
पर क्या इसकी इजाज़त देता है मुझे मेरा प्यार ?
Friday, March 7, 2008
न जाने आजकल यह क्या हो गया है मुझे
ह्ल्की सी आहट सुन दिल कह्ता है कि तू आई है
एक अजीब मगर खूबसूरत सा धोखा हो गया है मुझे
न जाने ....
हर फूल में नजर आता ह बस तुम्हारा ही चेहरा
तितलिंयों और भंवरो से शिकवा हो गया है मुझे
न जाने ...
मेरी रातें गुजरती हैं आजकल करवटें बदलते हुए
चांद तारों से ही अब तो वास्ता हो गया है मुझे
न जाने ....
बहुत परेशां था गम ए जिन्दगी से अब तके
तेरे प्यार की आस में होसला हो गया है मुझेन जाने ......
सब कुछ तो खो गया है, क्या पास रह गया है
फिर से कभी मिलेंगे दिल तोड़कर गये जो
उनका भी दोष क्या हम थे न उनके काबिल
यह सोचकर हमारा सब रंज बह गया है
हाथों से फिसले लम्हे, फिर किसको मिल सके हैं
दो ग़ज़लें
लब पे न सजाना अब नग्मों की तरह मुझ को
इल्जाम ज़माने के कुछ कम तो न थे मुझ पर
तूने भी सताया है औरों की तरह मुझ को
इस रंजे वफ़ा से मैं मर कर ही चलो छूटूं
हर ग़म से 'अनंत' उसको रखती हूँ बचा कर मैं
तिरे ख़्याल के साँचे में ढलने वाली नहीं
तू मुझको मोम समझता है पर ये ध्यान रहे
तिरे लिये मैं ज़माने से लड़ तो सकती हूँ
मैं अपने वास्ते भी ज़िंदा रहना चाहती हूँ
हरेक ग़म को मैं हँस कर ग़ुज़ार देती हूँ अब
Anant Kaur
5 Mapleshade Rd
Milltown, NJ 08850
जड़ें चमक रही हैं
ढेले खुश
घास को पता है
चीटियों के प्रजनन का समय
क़रीब आ रहा है
दिन-भर की तपिश के बाद
ताज़ा पिसा हुआ गरम-गरम आटा
एक बूढ़े आदमी के कंधे पर बैठकर
लौट रहा है घर
मटमैलापन अब भी
जूझ रहा है
कि पृथ्वी के विनाश की ख़बरों के ख़िलाफ़
अपने होने की सारी ताक़त के साथ
सटा रहे पृथ्वी से ।
मैं लाश नहीं हूँ
जो तैरता रहूँ ऊपर ही ऊपर ही पानी पर
मैं ज़िंदगी हूँ
अतल गहराईयों में जाऊँगा
सीप से मोती निकाल लाऊँगा
मैं तिनका नहीं हूँ
जो उलझ जाऊँ किसी चोर की दाढ़ी में
मैं गरीब की बीड़ी का लुक हूँ
हवाओं में उडूँगा
शोषकों की बस्ती में
आग लगाऊँगा !
क्यों करता है मन
हरदम किसी की आशा
क्यों चाहता है दिल
हरदम किसी को पास
क्यों एकाएक
कोई चेहरा
अच्छा लगता है
क्यों एकाएक
कोई दिल
सच्चा लगने लगता है
क्यों उतर जाता है कोई
दिल की गहराइयों में
क्यों कूकती है कोयल
मन की अमराईयों में
क्यों लगता है कि किसी पर
अपना सारा मन उडेल दूँ
किसी पर
सारा जहान बिखेर दूँ !
Thursday, March 6, 2008
कितने राजे आये,प्रेम पंरपरा न डिगा पाये,
प्रेम दिवस है नाम दिया, संत ने जीवनदान दिया,
व्यथा है, एक कथा है, प्रेम की सदैव यही प्रथा है,
मैं बद से बदतर हुआ जाता हूँ
शाम कितनी हसीन हो जाती है
अब तो खुष्क पत्तों पर
देखो न! यह मेरी कैसी तक़दीर है
तुमसे जुदा तो ख़ुद से जुदा रहता हूँ
देखो न! यह कैसी मेरी तक़दीर है
मैं तेरी चाहत रखता हूँ राहें तकता हूँ
दिन-रात तेरा ग़म ही ग़म है मुझे
सामने तेरा आना, शरमाना, नज़रें चुराना
इस तरह ऐसे हाल में कब तक जियूँगा
मेरा दीवाना दिल धड़कता है, तेरे लिए
मेरी रूह को सुकूँ दे, जीने को कोई जुनूँ दे
सामने तेरा आना, शरमाना, नज़रें चुराना
मेरी आशिक़ी हद पार कर जायेगी
मेरा दीवाना दिल धड़कता है, तेरे लिए
Wednesday, March 5, 2008
तुमने शुरू किया तमाम तुम ही करोगे
हम बदमिज़ाज ही सही दिल के बुरे नहीं
बदनाम करके हमको बड़ा काम करोगे
हर दाम पे 'सागर ' उन्हें तो नाम चाहिए
एक ऐसी भी घड़ी आती है
अब यहाँ कैसे रोशन होती
हो लिखी जिनके मुकद्दर में खिजां
एक अर्से से खुद में खोए हो
कच्चा-पक्का मकान था अपना
अपना तुमको समझ लिया हमने
वो भी गैरों-सी बात करने लगे
है पीपल ना पेड़ बेरी का
इससे आगे तो रास्ता ही नहीं
Tuesday, March 4, 2008
रात भर आँसू से जो लिखी गई ,
सुबह उस कहानी का
सौदा हुआ !
आरजू का आरजू से रिश्ता ही क्या ,
तुम किसी के हुए मैं किसी का हुआ !
देखिये कब कोई पढने वाला मिले ,
मैं हूँ अपने ही बजूद पर लिखा हुआ ,
प्यार का वो सफर हूँ जिसको 'सागर '
एक ही बादल
मिला
वो भी बरसा हुआ !
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वो शाम फिर आ गई
जो तेरी याद दिलाती है
जो ढलते सूरज के साथ
तेरे अहसास की रौशनी लाती है
दूर हिमालय पर जब
सूरज धरती की गोद मैं समां जाता हैं
अहसास तेरा दिल को चुराकर
मेरे रोम रोम मैं समां जाता है
तू नही हैं अब
जानता हूँ पर मान न सका कभी
पल पल तू याद आती है
तुझे न भुला सका कभी
रोज आती है वो शाम
दिल पर दस्तक देती हैं
गम के बदल घिर आते है फिर
और तेरी याद आंसू बनकर बह जाती है !
Monday, March 3, 2008
इश्क मैं इल्जाम उठाना जरुरी है !
सफ़र के बाद अफ़साने ज़रूरी हैं ना भूल पाए वो दीवाने ज़रूरी हैं
जिन आँखों में हँसी का धोखा हो उन के मोती चुराने ज़रूरी हैं
माना के तबाह किया उसने मुझे , मगर रिश्ते निबाहने ज़रूरी हैं
ज़ख़्म दिल के नासूर ना बन जाए मरहम इन पे लगाने ज़रूरी हैं
माना वो ज़िंदगी हैं मेरी लेकिन , पर दूर रहने के बहाने ज़रूरी हैं
इश्क़ बंदगी भी हो जाए, कम हैं, इश्क़ में इल्ज़ाम उठाने ज़रूरी हैं
महफ़िल में रंग ज़माने के लिए , दर्द के गीत गुन-गुनाने ज़रूरी है
रात रोशन हुई जिनसे ,सारी , सुबह वो चिराग बुझाने ज़रूरी
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जिन्दगी मौत और हम ।
जिन्दगी में क्या है तन्हा ,
जिन्दगी मौत और हम ।
दुनिया में क्या है बेवजह ,
जिन्दगी मौत और हम ।
दुनिया में क्या है बिखरा ,
जिन्दगी मौत और हम ।
दुनिया में क्या है अपना ,
जिन्दगी मौत और हम ।
दुनिया में क्या है बुरा ,
जिन्दगी मौत और हम ।
दुनिया में क्या है उलझा ,
जिन्दगी मौत और हम ।
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कुछ पन्नों को छोड के अब
कुछ पन्नों को छोड के अब मुझको लिखना होगा ।
यंकी है मुझको , तुमको जा के फिर वापस आना होगा ।।
आयेगा जब जाकर के तू , आयेगा जब जाकर के तू ,
कितना कुछ होगा जो , तुझको मुझसे केहना होगा ।
लिख लुँगा मैं अपनी बातें पन्नों पर ही सारी ,
आकर तुझको मेरी बातें पन्नों से ही सुनना होगा ।
तुझ बिन जीवन , जान बिना कैसे बीता ,
मुझको जीना और तुझको बस सुनना होगा ।
साथ रहे बरसों हम , अब दूर भी रह कर देंखें ,
दूरी आने से रिश्ता ये , गहरा और गहरा होगा ।
छुटे हुए पन्नों की बातें पास तुम्हारे जा बैठी है ,
आते में लेते आना ,पन्नों पे फिर लिखना होगा ।
hemjyotsana
इनकी और अधिक ग़ज़ल और कविता के लिए
प्यार बढने लगा तो गजल हो गई
रोज कहते हैं आऊँगा आते नहीं
उनके आने की सुनके विकल हो गई
ख्वाब में वो जब मेरे करीब आ गये
ख्वाब में छू लिया तो कँवल हो गई
फिर मोहब्बत की तोहमत मुझ पै लगी
मुझको ऐसा लगा बेदखल हो गई
वक्त का आईना है लवों के सिफर
लव पै मैं आई तो गंगाजल हो गई
'तारा' की शाइरी किसी का दिल हो गई
खुशबुओं से तर हर्फ फसल हो गई !
मेरी आँखों में किरदार नजर आता है
रँगे फलक यार का दीदार नजर आता है
पर्वत जैसी रात कटी कैसे पूछो मत
आसमाँ फूलों का तरफदार नजर आता है
सर्द पवन पहले लगता था मुझे गुलाबी
अब तो सनका-सा फनकार नजर आता है
माँगे भीख नहीं छीनो जो चाहे ले लो
यह कहना हमको दमदार नजर आता है
तुमसे बिछड़ी भूल हो गई 'तारा' की
उनका चेहरा सपनों में हर बार नजर आता है
हृदय मिले तो मिलते रहना अच्छा है
वक्त के संग - संग चलते रहना अच्छा है
गम का दरिया अगर जिन्दगी को समझो
धार के संग - संग बहते रहना अच्छा है
खुदा मदद करता उनकी जो खुद की करते
हिम्मत से खुद बढते रहना अच्छा है
अगर विश्व है, मंदिर-मस्जिद के अधीन
नियमित मंत्रों का जपते रहना अच्छा है
ठीक नहीं नजरों का फासला 'तारा' से
चाँद अंजुरी में उगते रहना अच्छा है
भीड़ भरी सड़कें सूनी - सी लगती है
दूरी दर्पण से दुगनी सी लगती है
मेरे घर में पहले जैसा सब कुछ है
फिर भी कोई चीज गुमी सी लगती है
शब्द तुम्हीं हो मेरे गीतों , छन्दों के
गजल लिखूँ तो मुझे कमी सी लगती है
रिश्ता क्या है नहीं जानती मै तुमसे
तुम्हें देखकर पलक झुकी सी लगती है
सिवा तुम्हारे दिल नहीं छूता कोई शै
बिना तुम्हारे बीरानी सी लगती है
चाँद धरा की इश्कपरस्ती के मानिंद
मुझको दीवानी लगती है !
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।। ग़ज़ल ।।
ख़यालों का आइना
सूर्ख़ उन्वां लिए मिला काग़ज़
ख़ून से तर-ब-तर हुआ काग़ज़
दूर परदेस में था वो लेकिन
बन गया उसका राबता काग़ज़
जब न कह पाए कुछ लबे ख़ामोश
उसकी नज़रों ने फिर लिखा काग़ज़
मेरे आँगन में आके पुरवाई
ले उड़ी मेरे गीत का काग़ज़
अक्स हर सोच का पड़ा उस पर
है ख़यालों का आइना काग़ज़
बर्फ के टीले आग की दरिया
नाव काग़ज़ की नाख़ुदा काग़ज़
ज़िंदगी भर रहा कोई प्यासा
'शेरी' कोरा ही रह गया काग़ज़ !!
ज़िंदगी का निचोड़
यूँ तो हर शाम पे इक मोड़ मिला
दिल किसी से मगर न जोड़ मिला
ऐ ग़मे-यार ! हम तेरी ख़ातिर
छोड़ आये उसे, जो छोड़ मिला
हार थक कर ख़ुदा को मान लिया
मौत का जब न कोई तोड़ मिला
माँगने का भी है एक मेयार
लाख चाहा, मगर करोड़ मिला
दुश्मनों की कमी नहीं है 'ख़याल'
ज़िंदगी का यही निचोड़ मिला !
अपना घर आया
दूर से दरिया समन्दर सा लगा
जब करीब आया तो क़तरा सा लगा
ढूँढता फिरता था जो औरों के दाग़,
उसका ख़ुद किरदार मैला सा लगा
इस कदर मसरूफ़ राहों में रहे
अपना घर आया तो मंज़िल सा लगा
खुश्बुओं की क्या किसी से दुश्मनी
छू गईं जिसको वो महका सा लगा
कितनी पाक़ीज़ा ज़ुबां उसको मिली
झूठ भी बोला तो सच्चा सा लगा
वो हमारे शहर का सुकरात था
विष का प्याला जिसको अमृत सा लगा
तुम न थे तो पत्थरों का ढेर था
आ गए तुम तो ये घर, घर सा लगा
किसको हाले दिल सुनाते हम 'नवीन',
जो मिला, ग़म उसका अपना सा लगा !
रंग-बिरंगे लोग
कितने रंग-बिरंगे लोग
मोटे-ताज़े-चंगे लोग
झूठ-घृणा का ज़हर वमन कर
करवाते नित दंगे लोग
क्या थे क्या आज हुए क्या
बेशऊर बेढंगे लोग
बन वज़ीर कुर्सी पर बैठे
लुच्चे और लफ़ंगे लोग
किसको फुर्सत सोचे उनकी
जो हैं भूखे-नंगे लोग
जाने राम कौन-सी मंशा
खोदें रोज़ सुरंगे लोग
हिम्मत है जवानी की निशानी
इस हौसले के सहारे
की मेरा देश बन छू सके
Wednesday, February 27, 2008
Tuesday, February 26, 2008
चिड़िया उदास है -
जंगल के खालीपन पर
बच्चे उदास हैं -
भव्य अट्टालिकाओं के
खिड़की-दरवाज़ों में कील की तरह
ठुकी चिड़िया की उदासी पर
खेत उदास हैं -
भरपूर फसल के बाद भी
सिर पर तसला रखे हरिया
चढ़-उतर रहा है एक-एक सीढ़ी
ऊँची उठती दीवार पर
लड़की उदास है -
कब तक छिपाकर रखेगी जन्मतिथि
किराये के हाथ
लिख रहे हैं दीवारों पर
'उदास होना
भारतीयता के खिलाफ़ है !'
हमें चाहिए अपने हिस्से की स्वतंत्रता
हमें चाहिए अपने हिस्से की समानता
उससे पेशतर विश्व में मनुष्यता में
कि हमें चाहिए अपने हिस्से का सुख
हमें चाहिए अपने हिस्से का जीवन
महाजीवन में
मालूम है हमें
कि भद्रजनों आदी नहीं हैं आप
ऐसे सत्र से
हाँ, कविता नहीं है
हमारे संघर्ष का घोषणा-
ज़िदंगी में सपने कौन नहीं देखता...और फिर उन्हीं सपनों को सच करना एक ख्वाब से बढ़कर कुछ नहीं होता, तब तक जब तक कोई आपको प्रोत्साहित नहीं करता। जी हाँ, मैं दोस्तों की बात कर रही हूँ. मैंने एक सपना देखा है अपनी कविता की एक किताब...जो के मैं अपने मित्रों और निकटजनों की सहायता से और आप सभी साथियों के आशि॔वाद से नये साल की फरवरी महीने की चौदह तारिख तक पबलिश करने का प्रयत्न कर रही हूँ. आशा है मुझे आप सभी का सहयोग प्राप्त होगा...
ज़िंदगी में एक ख्वाब
मैंने भी बुना है
मन ही मन कुछ सिला
है पुरे होने की आरजू़ है
लेकिन साथ मेरा कोई दे॥!?!
इसी की आकाँशा है!
दोस्तों का साथ हो बडों का आशि॔वाद हो !
मेरे सपनों की बुनी एक किताब
कहो! है न मेरे सर पर आपका हाथ?
पहाडों पर बारिश
पहाड़ों पर बारिश
ऐसे होती है
जैसे किसी लाड़ली की
उसके बाबुल के घर से
बिदाई
दहाड़ती
पेड़ों को पछाड़ती
पहाड़ी हवा
और पीटती बारिश
जैसे नगाड़ों पर बूंदें
नृत्य कर रही हो
आज की रात
आज की रात
पतझर की आख़िरी रात है
देखो
किस तरह
उलझ गया है चाँद
गुलमोहर की
सूखी टहनियों के बीच
कल बसंत की
पहली सुबह होगी
कल चाँद
हरे कोपलों के बीच
नाचेगा
दर्द का सागर हूँ
इस अजनबी सी दुनिया में,
अकेला इक ख्वाब हूँ।सवालों से खफ़ा, चोट सा जवाब हूँ।
जो ना समझ सके, उनके लिये "कौन"।
जो समझ चुके, उनके लिये किताब हूँ।
दुनिया कि नज़रों में, जाने क्युं चुभा सा।
सबसे नशीला और बदनाम शराब हूँ।
सर उठा के देखो, वो देख रहा है तुमको।
जिसको न देखा उसने, वो चमकता आफ़ताब हूँ।
आँखों से देखोगे, तो खुश मुझे पाओगे।
दिल से पूछोगे, तो दर्द का सैलाब हूँ.
तोता सीख गया है हवेलियों की जुबान
हवेली ने
उस उड़ते हुए
तोते को कैद कर लिया है
या तोते ने
हवेली की उड़ान को
शहर में सन्नाटा छा जाता है
तोते की बोली से
तोता सीख गया है
हवेलियों की जुबान
जलायी गई औरत की चीख
उस पर बरसाये गए
कोड़ों की आवाज़
तोता यदा-कदा रटने लगता है
कब की मर चुकी
ज़िंदा जलती
उस औरत की चीख-पुकार
और लोग दौड़ पड़ते हैं
उस हवेली की ओर
कि फिर कहीं
कोई औरत.......
सज़ा
उस बंद शीसी में
शायद
हवा का दम
घुट रहा है
जी चाहता है
उसे आज़ाद कर दूँ
और उसकी जगह
उसमें भर दूँ
अपना दर्द
दे दूँ उसे
उम्र-कैद की
सज़ा
-------------------------------------------------------------------------------------------------
ये धड़कन कहीं रुक जाए ना,
मेरी हर दलील को किया अनसुनी,
मुझे चाँद की कभी तलब ना थी,
बेशक भूलना तुझे चाहा बहुत,
*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
एस.एम.एस.
अब नहीं लिखते वो खत
करने लगे हैं एस.एम.एस
तोड़ मरोड़ कर लिखे शब्दों के साथ
करते हैं खुशी का इजहार
मिटा देता है हर नया एस.एम.एस
पिछले एस.एम.एस.का वजूद
एस.एम.एस के साथ ही
शब्द छोटे होते गए
भावनाएँ सिमटती गईं
खो गयी सहेज कर रखने की परम्परा
लघु होता गया सब कुछ
रिश्तों की कद्र का अहसास भी।
सिमटता आदमी
सिमट रहा है आदमी
हर रोज अपने में
भूल जाता है भावनाओं की कद्र
हर नयी सुविधा और तकनीक
घर में सजाने के चक्कर में
देखता है दुनिया को
टी. व्ही. चैनल की निगाहों से
महसूस करता है फूलों की खुशबू
कागज़ी फूलों में
पर नहीं देखता
पास-पड़ोस का समाज
कैद कर दिया है
बेटे को भी
चहारदीवारियों में
भागने लगा है समाज से
चौंक उठता है
कॉलबेल की हर आवाज़ पर
मानो
खड़ी हो गयी हो
कोई अवांछित वस्तु
दरवाजे पर आकर।
लड़की
न जाने कितनी बार
टूटी है वो टुकड़ों-टुकड़ों में
हर किसी को देखती
याचना की निगाहों से
एक बार तो हाँ कहकर देखो
कोई कोर कसर नहीं रखूँगी
तुम्हारी ज़िंदगी संवारने में
पर सब बेकार
कोई उसके रंग को निहारता
तो कोई लम्बाई मापता
कोई उसे चलकर दिखाने को कहता
कोई साड़ी और सूट पहनकर बुलाता
पर कोई नहीं देखता
उसकी ऑंखों में
जहाँ प्यार है, अनुराग है
लज्जा है, विश्वास है।
ज़ख्म
ज़ख्म न दे मुझे और ज़ख्म न दे ,
ओ सनम बेवफा, मुझे और ज़ख्म न दे।
तुझे देखा, तुझे चाहा, तुझे अपनाया इस दिल ने,
चाँद सी इस सूरत में, पाया है जन्नत इस दिल ने,
किसी और का चेहरा अब ख्यालों में नहीं आता,
तसव्वुर में भी तेरा मासूम चेहरा यादें बन मुझे सताता।
ज़ख्म न दे मुझे और ज़ख्म न दे ,
ओ सनम बेवफा, मुझे और ज़ख्म न दे।
तोड़ कर इस शीशे-सा दिल को क्या तूने पाया,
मुहब्बत की राह में फूलों की जगह यों काँटों को बिछाया,
मंजिल बहुत दूर है ओ यारा, तुझे यह क्यों समझ नहीं आया,
तेरे बगैर ओ जानेमन, इक पल भी मुझे चैन नहीं आया।
ज़ख्म न दे मुझे और ज़ख्म न दे ,
ओ सनम बेवफा, मुझे और ज़ख्म न दे
ज़ख्म का दर्द वही समझे जिसने ज़ख्म है खाया,
ज़ख्म देते वक्त तुझे, क्या इस आशिक पर तरस नहीं आया,
ज़ख्म की वजह से जिन्दगी बेदर्द लगने लगी है,
ज़ख्म सहते-सहते मुहब्बत की नूर शायद बुझने लगी है।
ज़ख्म न दे मुझे और ज़ख्म न दे ,
ओ सनम बेवफा, मुझे और ज़ख्म न दे
सिनसिला ये ज़ख्मों का अब और सहा नहीं जाता,
तेरी गलियों से गुजरने को अब और जी नहीं करता,
तझे कभी न अब मिलूँगा, किसी और से न ऐसी बेवफाई कर,
खुदा का तुझे है वास्ता, इस ज़ख्मी को और ज़ख्मी न कर।
ज़ख्म न दे मुझे और ज़ख्म न दे ,
ओ सनम बेवफा, मुझे और ज़ख्म न दे
-----------------
मैं मजदूर हूं
तड़प रहा हैं दिल, ठहर रही हैं सांसें।
नहीं रोक सकता पर कदमों को
मैं बड़ा मजबूर हूं क्योंकि
आज इस जन्म में
मैं इक मजदूर हूं।
लाख बनायें आशियां, लाख बनायें मंदिर
फिर भी इस पावन घरा पर
सोने को मजबूर हूं ।
क्योंकि मैं इक लाचार और गरीब सा
मजदूर हूं।
खूब उगाई फसलें हमने, खूब बहाई नहरें
फिर भी दर्द भूख का सहने
को मजबूर हूं।
क्योंकि आज इस जन्म में
मैं इक मजदूर हूं।
नहीं मुस्कुरा सकता हूं मैं, ना बहा
सकता हूं आंसू।
मैं हर पल इसी तरह
घुट घुटकर जीने को मजबूर हूं
क्योंकि आज की इस
अमीर दुनिया में, सिर्फ
मैं इक मजदूर हूं।
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Monday, February 25, 2008
मां मुझे तेरा चेहरा याद आता है
वो तेरा सीने से लगाना,
आंचल में सुलाना याद आता है।
क्यों तुम मुझसे दूर गई,
किस बात पर तुम रूठी हो,
मैं तो झट से हंस देता था।
पर तुम तो
अब तक रूठी हो।
रोता है हर पल दिल मेरा,
तेरे खो जाने के बाद,
गिरते हैं हर लम्हा आंसू ,
तेरे सो जाने के बाद।
मां तेरी वो प्यारी सी लोरी ,
अब तक दिल में भीनी है।
इस दुनिया में न कुछ अपना,
सब पत्थर दिल बसते हैं,
एक तू ही सत्य की मूरत थी,
तू भी तो अब खोई है।
आ जाओ न अब सताओ,
दिल सहम सा जाता है,
अंधेरी सी रात में
मां तेरा चेहरा नजर आता है।
आ जाओ बस एक बार मां
अब ना तुम्हें सताउंगा,
चाहे निकले
जान मेरी अब ना तुम्हें रूलाउंगा।
आ जाओ ना मां तुम,
मेरा दम निकल सा जाता है।
हर लम्हा इसी तरह ,
मां मुझे तेरा चेहरा याद आता है।
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वो बूढ़ी सी अम्मा
गोरी से पीली
पीली से काली हो गई हैं अम्मा
इक दिन मैंने देखा
सचमुच बूढ़ी हो गई है अम्मा।
कुछ बादल बेटे ने लूटे
कुछ हरियाली बेटी ने
एक नदी थी
कहां खो गई रेती हो गई हैं अम्मा
देख लिया है सोना चांदी
जब से उसके बक्से में
तब से बेटों की नजरों
अच्छी हो गई हैं अम्मा।
कल तक अम्मा अम्मा कहते
फिरते थे जिसके पीछे
आज उन्हीं बच्चों के आगे
बच्ची हो गई है अम्मा।
घर के हर इक फर्द की आँखों में
दौलत का चश्मा हैं
सबको दिखता वक्त कीमती
सस्ती हो गई अम्मा।
बोझ समझते थे सब
भारी लगती थी लेकिन जब से
अपने सर का साया समझा
हल्की हो गई अम्मा।
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जरूरत तुम्हारी है
जम गयी है ओस गुलाब की पत्ती पर,
समां गई है तेरी याद इस दिल में ,
बिखरने लगे है यादों के पन्ने
तेरी प्यार की हवा से।
गिरने लगे है अश्क,
नम हो गई यादों की किताब,
सिसक रहा है हर लफ्ज ,जिसमें
समाई हैं ,जुदाई।
थम गया है सागर
खाने लगी है हवा कोने कोने से,
पत्थर हो गई है, साहिल की रेत
पानी से बिछड़कर।
सिमट-सा रहा है आसमां
बरस रहें है तारें तेजी से ज़मीं की ओर,
गले मिल रहे चांद और सूरज
एक लंबे अरसे के बाद।
बदल सकती है सारी कायनात,
मेरी इस नज्म की तरह ,
नहीं बदल सकता तो सिर्फ मेरा प्यार
जो है तुम्हारे लिए।
आ गया है प्यार का दिन ,
आ जाओ अब तुम भी ,
मेरी टूटती हर एक सांस को
जरूरत तुम्हारी है।
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वह टूटा पुल।
वह संकरा सा पुल अब भी टूटा है
अब भी लोग वहां से गिरते हैं।
अब भी लोग वहां मरते हैं।
अब भी बांटे जाते हैं
वीरता पुरस्कार - मरनें वालों
को बचाने में।
पर वह संकरा सा पुल अब भी टूटा है।
अस्त हो सकता है सूरज,
डूब सकता है चांद हमेशा के लिए
पर टूटा है और टूटा ही रहेगा
वह संकरा सा पुल।
बदल चुके कई सत्ताघारी,
शहीद हो चुके कई लोग
पर नहीं बदली तो हालत
उस संकरे पुल की ।
वह संकरा सा पुल अब भी टूटा है।
बड़े बड़े वादों से नाता है
उस पुल का।
अब तो कांप सी जाती है वादों
के भार से पुल की दीवारें।
टूट चुके वे सभी वादे जो जोड़ते थे
पुल को, आ गयी है उनमें दरारें
बिल्कुल पुल की तरह।
बदलेगी अभी अनेकों सरकारें,
बनेगी अभी एक और इबारत, नये वादों की
पर, वह संकरा सा पुल अब भी टूटा है
और सदा टूटा ही रहेगा
वह टूटा, संकरा पुल।
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वह मुझे मां कहता है।
वह अब भी मुझे मां कहता है।
सताता हैं रुलाता है
कभी कभी हाथ उठाता है पर
है वह मुझे मां कहता है।
मेरी बहू भी मुझे मां कहती हैं
उस सीढ़ी को देखो,मेरे पैर के
इस जख्म को देखो,
मेरी बहू मुझे
उस सीढ़ी से अक्सर गिराती है।
पर हाँ,वह मुझे मां कहती है।
मेरा छोटू भी बढिया हैं,जो मुझको
दादी मां कहता है,
सिखाया था ,कभी मां कहना उसको
अब वह मुझे डायन कहता हैं
पर हाँ
कभी कभी गलती सें
वह अब भी मुझे मां कहता है।
मेरी गुड़िया रानी भी हैं ,जो मुझको
दादी मां कहती है
हो गई हैं अब कुछ समझदार
इसलिए बुढ़िया कहती हैं,
लेकिन हाँ
वह अब भी मुझे मां कहती है।
यही हैं मेरा छोटा सा संसार
जो रोज गिराता हैं
मेरे आंसू ,
रोज रुलाता हैं खून के आंसू
पर मैं बहुत खुश हूं, क्योंकि वे सभी
मुझे मां कहते है।
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मैं और मेरा अलाव
सुनसान घर के सुनसान कमरे में
रहते है सिर्फ दो तन्हा लोग
इक में और इक मेरा अलाव।
जलते है दोनों
मैं जलता हूं तन्हाई में
तो वो जलता है सर्द हवाओं में!
करते है बातें कभी वफा की तो
कभी बेवफाई की।
कहता हैं तन्हा अलाव बड़ी मतलबी
है ये दुनिया, छोड़ जाती है
सर्द मौसम के बाद।
मैं कहता हूं
ना सर्दी,ना गर्मी,ना बरसात
यहाँ तो लोग छोड़ जाते
हर इक अपने मतलब
के बाद।
कहता हैं अलाव बेहद सताती है
दुनिया,ठंडी होती है
जब दिल की आग तो फिर
जलाती हैं दुनिया।
मैं कहता हूं
नहीं नहीं दो दिलों में जली
इश्क,मुहब्बत और प्यार की आग को
बुझाती है दुनिया।
कहता हैं तन्हा अलाव
वो उनकी यादें,वो उनका साथ
मुझे अक्सर याद आता है और अक्सर
तन्हाई में चुपके से रुलाता है।
मैं कहता हूं
हाँ हाँ आते तो हैं उनके ख्याल
पर ना वे मुझे सताते है ना रुलाते है
वे तो अजनबी की तरह दिल के दरवाजे
से ही लौट जाते है।
सुनसान घर के सुनसान कमरे में
करते है बातें।
कभी वफा की तो कभी बेवफाई की
दो तन्हा लोग
इक मैं और इक मेरा अलाव।
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न जानूं कौन हूँ मै,
मै न जानूं कौन हूं मैं
लोग कहते हैं सबसे जुदा हूं मैं
मैंने तो प्यार सबसे किया
पर न जाने कितनों ने धोखा दिया।
चलते-चलते कितने ही अच्छे मिले,
जिनको बहुत प्यार दिया,
पर कुछ लोग समझ ना सके,
फिर भी मैंने सबसे प्यार किया।
दोस्तों की खुशी से ही खुशी है,
तेरे गम से हम दुखी है,
तुम हंसो तो खुश हो जाऊंगा।
तेरी आंखों में आंसू हो तो मनाऊँगा।
मेरे सपने बहुत बड़े हैं
पर अकेले हैं हम, अकेले हैं,
फिर भी चलता रहूंगा
मंजिल को पाकर रहूँगा।
ये दुनिया बदल जाए कितनी भी,
पर मैं न बदलूंगा,
जो बदल गये वो दोस्त थे मेरे
पर कोई न पास है मेरे।
प्यार होता तो क्या बात होती
कोई न कोई तो होगी कहीं न कहीं
शायद तुम से अच्छी या
कोई नहीं इस दुनिया में तुम्हारे जैसी।
आसमान को देखा है मैंने, मुझे जाना वहां है
जमीन पर चलना नहीं, मुझे जाना वहां है,
पता है गिरकर टूट जाऊँगा, फिर उठने का विश्वास है
मैं अलग बनकर दिखाऊँगा।
पता नहीं ये रास्ते ले जाएं कहां,
न जाने खत्म हो जाएं, किस पल कहां,
फिर भी तुम सब के दिलों में जिंदा रहूंगा,
यादों में सब की, याद आता रहूंगा।
................-
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कभी अलविदा न कहना
कभी याद आये तो, इक बार कहना
कभी सागर बनके इन आंखों से बहना
पर कभी किसी भी हाल में तुम
अलविदा न कहना।
तुम साथ रहो या जुदा रहो हर वक्त
मुझे याद करना, खुशी मिले या गम
मिले तुम्हें। पर कभी मुझसे
अलविदा न कहना
गुजरे पल जो साथ हमारे, याद उन्हें तुम
करना, लाख करे दुनिया रुसवाई, दिल में
ही हमको रखना। कभी भी हो यार पर
कभी अलविदा न कहना।
बिजली चमके या तूफां आये, हौसला तुम
रखना गर टूट जाओ जो तुम खुद से ही
तो सिर्फ आंख बंद बस करना, पर कभी
यार तुम अलविदा न कहना।
पूछे गर मेरे आंसू तो, उनको कुछ मत कहना
सवाल करें जब आंसू ही तेरे, ता मुझे
बेवफा कहना। कितना ही दूर रहँ मैं पर
कभी अलविदा न कहना।
टूट जाये जो सांस तुम्हारी, आस मुझ पर
रखना, सूख जाये जो लव तुम्हारे तो
बस सागर कहना। मर कर भी यार
तुम कभी अलविदा न कहना।
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एक लड़की मुझे सताती है
अंधेरी सी रात में एक खिड़की
डगमगाती है
सच बताऊँ यारों, एक लड़की
मुझे सताती है।
भोली भाली सूरत उसकी
मखमली सी पलकें है
हल्की इस रोशनी में, मुझे
देख शर्माती है
सच बताऊँ यारों, इक लड़की
मुझे सताती है
बिखरी-बिखरी जुल्फें उसकी
शायद घटा बुलाती है, उसके
आंखों के काजल से बारिश
भी हो जाती है
दूर खड़ी वो खिड़की पर
मुझे देख मुस्कुराती है।
सच बताऊँ यारों, इक लड़की
मुझे सताती है
उसकी पायल की छम-छम से
एक मदहोशी सी छा जाती है
ज्यों की आंख बंद करुं मैं
तो, सामने वो जाती है
सच बताऊँ यारों, इक
लड़की मुझे सताती है
अंधेरी सी रात में एक खिड़की
डगमगाती है
ज्यों ही आंख खोलता हँ
मैं तो ख्वाब वो बन जाती है
रोज रात को इसी तरह
इक लड़की मुझे सताती है।
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एक भोली सी गाय।
रोज सुबह खड़ी-खड़ी रंभाती है।
ऊँचे दरवाजों पर, नहीं चीर
पाती उसकी आवाज
बजते अश्लील संगीतों को।
थक हार कर लड़खड़ाते
कदमों से खोजती है
पेड़ों को, हरियाली को
बहती नदियों को।
पर नहीं मिलता उसको
ऐसा कोई निशां
पूछती है पता
कभी रोकर, तो कभी
रंभाकर
ढूंढती है उन रास्तों को
जो जाते हो उसके गांव
की ओर।
कोसती है
उस दिन को जब
बेचा गया था दलालों के
हाथ उसको।
याद करती है
गाँव में गुजरे, वे सुखद
पल।
पर नहीं मिले वे सुख
यहां, न ही मिले वे सुख
यहां, न ही मिलने
की आस है
रोज सुबह खड़ी-खड़ी रंभाती है
ऊँचे दरवाजों पर,
एक प्यारी, भोली-सी गाय।
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बापू तेरे प्यार में.
बापू तेरे प्यार में बहता था संसार
सत्य अहिंसा और धर्म का लगा था अंबार
लेकिन वो दिन लद गये
आज उनमें नेता बस गये।
बापू मेरे दुखी मत होना, ये तो रीत पुरानी हैं
किया भला जिसने उसने ही बुराई पाई है।
मेरी सदा यह याद रखना
अब ना होगा गाँधी ,
न नेहरू के दिन आयेंगे
अब तो वे दिन आये है
जब लालू ही पूजे जायेंगे।
दोष नहीं देता मैं बापू तुमको,
ये तो आपकी भलमनसाहत थी
तब भी भारत आपका था ,
आज भी आपकी अमानत हैं।
बापू तेरे कदमों में बिछता था, संसार
बुरा बोलना, बुरा देखना ,बुरा सुनना
था सब बेकार ।
अब उसूल बदल चुके हैं,
सब पश्चिम में ढल चुके हैं
बापू मेरे दुखी मत होना , ये तो रीत पुरानी हैं
पानी हुआ पुराना हैं सारी दुनिया शराब की दीवानी है।
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परिचय
संजय सेन सागर
जन्म 10 जुलाई 1988 म.प्र सागर
उपलब्धि
संजय सेन सागर की कहानी इक अजनबी को ब्राइटनेस पब्लिकेशन ऑफ दिल्ली की तरफ से राइस ऑफ राइटर अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।
यंग राइटर्स फाउंण्डेशन ऑफ इंडिया गुप्र के सदस्य
संपर्क:
ड़ाँ निशीकांत तिवारी के पीछे, आदर्श नगर ,मकरोनियाँ चौराहा, सागर
मध्यप्रदेश पिन 470004