Tuesday, March 25, 2008

कहानी प्रतियोगिता 2008


कहानी प्रतियोगिता 2008


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Sunday, March 9, 2008

हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय की और अधिक जानकारी के लिए !







डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर

डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर की स्थापना डॉ सर हरीसिंह गौर ने सन् 1946 में की थी !डॉ हरिसिंह गौर को इस विश्वविद्यालय की स्थापना करने मैं कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा था !सागर विश्वविद्यालय की नींव डॉ हरिसिंह गौर ने अपनी जिंदगी की सारी आय को व्यय करकर रखी थी ! यह भारत का सबसे प्राचीन तथा बड़ा विश्वविद्यालय कहलाया जाता है ! जब डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर की स्थापना की गई तब डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय भारत का 18वां विश्वविद्यालय था! इस स्थापना के साथ ही डॉ गौर का सपना साकार हुआ! डॉ हरीसिंह गौर का जन्म 26 नवंबर 1870 को सागर के शनीचरी टौरी में हुआ था! उनके पिता ठाकुर तखतसिंह पुलिस सेवा से वास्ता रखते थे !

सागर में मिडल स्कूल की परीक्षा पास करने के बाद वे नागपुर चले गए। मैट्रिक में उन्होंने सारे प्रांत में प्रथम स्थान प्राप्त किया. इसके बाद वे फ्रीचर्च इंस्टीटयूट के छात्र रहे. सन् 1889 में वकालत की शिक्षा के लिए वे यूरोप चले गए. यूरोप पहुच कर डाउनिंग कॉलेज में प्रवेश लेने के बाद उन्होंने सन् 1891 में दर्शन और अर्थशास्त्र में स्नातक और 1892 में कानून की उपाधि प्राप्त की। योरप में वे एक विधिवेत्ता और कवि के रूप में चर्चित हुए और उन्हें रॉयल सोसायटी का सदस्य चुना गया. सन् 1905 में डॉ गौर ने लंदन में डीलिट की उपाधि प्राप्त की. शीघ्र ही उन्‍होंने ख्‍याति अर्जित करना शुरु कर दिया.

डॉ गौर ने जिंदगी भर संघर्ष किया और अपनी जिंदगी को औरों की सेवा मैं लगाना ही बेहतर समझा !उन्होने अपने जीवन के अन्तिम पडाब मैं अपनी जिंदगी की सारी कहानी को पन्नों पर उतरा और फिर यही से उन्हें विचार आया डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय की नीब रखने का ।जिसमे उन्होने अपनी जीवन की सारी कमाई करीब १ करोड़ ९५ लाख रुपए को इस महान कार्ये मैं खर्च किया ! जिसकी बदोलत ही आज न केबल सागर बल्कि दमोह, पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़ और छिंदवाड़ा जैसे जगहों से पढने वालों का तादाद मैं भी काफी इजाफा हुआ है ,साथ ही साथ बे गरीब जो महंगी शिक्षा प्राप्त करने बहार नहीं जा सखते उन्हें बही शिक्षा सागर मैं उपलब्ध कराकर डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर एक महान कार्ये कर रहा है !


सम्पूर्ण बुंदेलखंड की पहल पर अब सागर को केन्द्रिये दर्जे की मांग की जा रही है जिश्मे सम्पूर्ण बुंदेलखंड ने एकता का परिचय दिया है और अब हम्हे भी जरूरत है की हम भी मिलकर इस मांग को मजबूती के साथ प्रदर्शित करे !


तो बताइए की हमारे डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय को क्यों

दिया जाना चाहिए है सम्मान ।क्या है इसकी विशेषता और अगर आप चाहते हैं की आपके विश्वविद्यालय मैं किसी भी तरह का सुधार हो तो आखिर क्या है बे समस्या !

अपने विचारों को नीचे लिखे कमेंट्स बॉक्स मैं अपने नाम के साथ टाइप कर दीजिये !आप और हम मिलकर ही रचंगे एक नया इतिहास !

संजय सेन की और अधिक रचनाओं के लिए यंही पर क्लिक करे !!


हमारा सपना पूरा होगा !

सागर विश्वविद्यालय को लेकर हमेशा से ही दिल मैं कुछ ख़ास था ,मैं हर वक्त गौर विश्वविद्यालय मैं पढने के बारे मैं ही सोचा करता था मैंने सोचा था की सागर यू .टी .डी के लिए कुछ नए रूप मैं सहयोग करना है !इसी सोच ने मुझे यह ब्लॉग बनाने के लिए प्रेरित किया !चुकि यह भारत का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय है और यंहा पर एक नया ही अनुभव प्राप्त होता है ! डॉ गौर न जो सपना था उन्होंने बड़ी ही सिद्दत से उसे मुकाम तक पहुँचाया है ! अब एक सपना सम्पूर्ण बुंदेलखंड ने देखा है ! सम्पूर्ण बुंदेलखंड की पहल पर अब सागर को केन्द्रिये दर्जे की मांग की जा रही जो लाखों लोगों के दिलों से जुड़ी हुई है ! इस अभियान के तहत जिस प्रकार सम्पूर्ण बुंदेलखंड ने एकता का परिचय दिया बह काबिले तारीफ है !
डॉ गौर के अपना सपूर्ण जीवन हमारे हित के लिया समर्पित कर दिया तो क्या हम चंद पल उनके नाम नही कर सकते ! मेरा और सम्पूर्ण बुंदेलखंड का यह सपना बहुत जल्द ही पूरा होगा और हम सागर की पहचान को डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर के नाम पर मजबूत कर पाने मैं सफल हो पाएंगे !
संजय सेन सागर , ब्लोगर ऑफ़ यादों की किताब

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सागर की शान है,गौर विश्वविद्यालय
मैंने जब से होश संभाला है तब ही से सुनते आया हूँ की डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय के सागरवासियों पर क्या अहसान है ,डॉ गौर ने हम्हे एक ऐसा अनमोल तोहफा दिया है जो हर जीवन को एक नया प्रकाश देने का प्रयाश करता है ! डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय ने इतने वषों मैं जिस तरह से सागर का नाम सम्पूर्ण विश्व मैं ऊँचा किया है बह काबिले तारीफ है ! और अब डॉ गौर के सपने के बाद अब जरूरत है हमहे अपना सपना पूरा करने की यानि की डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर को केन्द्र्य दर्जा दिलाने की !डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर किसी भी तरह से बिबाद का विषय न होकर ज्ञान का विषय है इशे राजनीती की नजरों से न देखते हुए ज्ञान की नीति बनाकर देखा जन चाहिए फिर देखिये ही इसे कौन केन्द्रया दर्जे से दूर कर सकता है डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर को यह उपाधि बहुत जल्द मिलेगी !
संतोष जैन स्टील ,प्रदेश अध्यक्ष , युवा शक्ति संगठन

Saturday, March 8, 2008

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आज भी पलक जब झपके




आज भी पलक जब झपके
आए सामने तेरा चेहरा
तुम क्या गई हो ज़िंदगी से
हो गया हूँ और भी तनहा
तुम्हारी वो हँसी


अब भी याद आती है
वो पहली मुलाकात
मुस्कान छोड़ जाती है !
तुम्हारी बातों के वाना
दिल में अब तक मचला करते हैं
क्यों दिल की बात न कह सके
अपने आप से शिकायत करते हैं !
बेवफाई का दाग तुम्हे देके
अपने आप को बचाना चाहते हैं
लफ्जों के बानों से हा
ममोहोब्बत इन्तेहा जताना चाहतें हैं !




दीपक जोक की रचना






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करता हूँ में सिर्फ़ तुमसे प्यार




तेरी याद जब आती है

याद आती है तेरी बेवफाई

तुने दिए जो मुझको आंसू

याद आता तेरा वह प्यारा

जो खो गया कहीं दूर

चाह जिसे जान से भी ज्यादा

याद आया न उसको कोई वादा

वो तेरी तस्वीर को मेरा निहारना
पर अब आंखो में सिर्फ़ नफरत उभरना
अब नहीं करता हूँ मैं तुझसे प्यारा
नहीं बन न चाहता हूँ मैं तेरा यारा
पर क्या इसकी इजाज़त देता है मुझे मेरा प्यार ?

करूं में क्या ?

करता हूँ में सिर्फ़ तुमसे प्यार !



दीपक जोक

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Friday, March 7, 2008


जब से देखा तुम्हें इक नशा सा हो गया है मुझे,
न जाने आजकल यह क्या हो गया है मुझे
ह्ल्की सी आहट सुन दिल कह्ता है कि तू आई है
एक अजीब मगर खूबसूरत सा धोखा हो गया है मुझे
न जाने ....
हर फूल में नजर आता ह बस तुम्हारा ही चेहरा
तितलिंयों और भंवरो से शिकवा हो गया है मुझे
न जाने ...
मेरी रातें गुजरती हैं आजकल करवटें बदलते हुए
चांद तारों से ही अब तो वास्ता हो गया है मुझे
न जाने ....
बहुत परेशां था गम ए जिन्दगी से अब तके
तेरे प्यार की आस में होसला हो गया है मुझेन जाने ......

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!गजल !


पोटली उम्मीदो की यू॑ ही उठाये रखिये !

इतनी रखी है थोडी ऒर बनाये रखिये !!

तेज हवाओ मे बुझ ना जाये कही

दिये को, ओट के सहारे रखिये !!

प्यार ने ही कोख से जना है दर्द को !

इसे भी सीने से लगाये रखिये !!

कद से भी बडे ना हो जाये कही !

अपनी हदो मे ही अपने साये रखिये !!

ना आत्मा, ना भाव, पर कविता कहेगे बहाये रखिये !!

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आप के लिए मेरी [संजय सेन सागर] की कुछ और अनमोल गजल

अहसास
सब कुछ तो खो गया है, क्या पास रह गया है

तुम साथ हो, यह झूठा अहसास रह गया है
फिर से कभी मिलेंगे दिल तोड़कर गये जो

उम्मीद तो नहीं पर विश्वास रह गया है
उनका भी दोष क्या हम थे न उनके काबिल
यह सोचकर हमारा सब रंज बह गया है
हाथों से फिसले लम्हे, फिर किसको मिल सके हैं

जाती हवा का झोंका,चुपके से कह गया है।!

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गजल...!

कभी ह॑से कभी मुस्करा हम दिये !

यू॑ ही खता उनकी, भुला हम दिये !

अपने पैरो पर भरोसा है बहुत !

इसलिये हर कन्धा, ठुकरा हम दिये !!

सच, दोस्तो का मोहताज नही है !

यही सोच, कदम, बढा हम दिये !!

सोच-सोच कर अब आ रही है ह॑सी !

क्यो अन्धो को आइना, दिखा हम दिये !!

दर्द ही मिला था विरासत मे दोस्तो !

कुछ उभर आये, कुछ दबा हम दिये !!

'सागर ’ ने दी थी आग, हवन की खातिर !

जलने लगे जब घर, तो बुझा हम दिये !!

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गजल !

हर शहर मे भीड हर गा॑व वीरान है !

बाप गा॑व मे, बेटा शहर मे परेशान है !!

वो शख्श जो फ़टेहाल, भूखा ऒर न॑गा है !

कोई ऒर नही अपने ही देश का किसान है !!

ही ख्वाहिशे जल कर भस्म हुई !

हर दिल मे कही ना कही, कोई शमशान है !!

कोई वजह है, जो चुप रहा करते है !

वरना वो गू॑गे नही उनके भी जुबान है !!

वो बच्चा रो रो कर सोया है अभी !

देखो उसके माथे पर चोट का निशान है !!

'सागर ’ अब चल फ़िर कर ऒर कही देखे !

बहुत बडी दुनिया बहुत बडा जहान है !!



।। ग़ज़ल ।।
दो ग़ज़लें

अनन्त कौर



लब पे न सजाना अब नग्मों की तरह मुझ को

बेहतर है भुला दो तुम ख्वाबों की तरह मुझ को

इल्जाम ज़माने के कुछ कम तो न थे मुझ पर
तूने भी सताया है औरों की तरह मुझ को

इस रंजे वफ़ा से मैं मर कर ही चलो छूटूं

ऐ दोस्त मिटा दे तू लफ्जों की तरह मुझ को


भेजे हैं गुलाब उस ने पर आप नहीं आया

तोहफे भी दिए उसने काँटों की तरह मुझ को

हर ग़म से 'अनंत' उसको रखती हूँ बचा कर मैं

है उस की मुहब्बत भी बच्चों की तरह मुझ को

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तिरे ख़्याल के साँचे में ढलने वाली नहीं

मैं ख़ुशबुओं की तरह अब बिखरने वाली नहीं

तू मुझको मोम समझता है पर ये ध्यान रहे

मैं एक शमा हूँ लेकिन पिघलने वाली नहीं

तिरे लिये मैं ज़माने से लड़ तो सकती हूँ

तिरी तलाश में घर से निकलने वाली नहीं

मैं अपने वास्ते भी ज़िंदा रहना चाहती हूँ

सती हूँ पर मैं तेरे साथ जलने वाली नहीं

हरेक ग़म को मैं हँस कर ग़ुज़ार देती हूँ अब

की ज़िंदगी की सज़ाओं से डरने वाली नहीं !!

Anant Kaur
5 Mapleshade Rd
Milltown, NJ 08850

।। जड़ें ।।


जड़ें चमक रही हैं
ढेले खुश
घास को पता है
चीटियों के प्रजनन का समय
क़रीब आ रहा है

दिन-भर की तपिश के बाद
ताज़ा पिसा हुआ गरम-गरम आटा
एक बूढ़े आदमी के कंधे पर बैठकर
लौट रहा है घर

मटमैलापन अब भी
जूझ रहा है
कि पृथ्वी के विनाश की ख़बरों के ख़िलाफ़
अपने होने की सारी ताक़त के साथ
सटा रहे पृथ्वी से ।

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।। मैं ज़िंदगी हूँ ।।


मैं लाश नहीं हूँ
जो तैरता रहूँ ऊपर ही ऊपर ही पानी पर
मैं ज़िंदगी हूँ
अतल गहराईयों में जाऊँगा
सीप से मोती निकाल लाऊँगा

मैं तिनका नहीं हूँ
जो उलझ जाऊँ किसी चोर की दाढ़ी में
मैं गरीब की बीड़ी का लुक हूँ
हवाओं में उडूँगा
शोषकों की बस्ती में
आग लगाऊँगा !


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।। शायद प्यार के कारण ।।

क्यों करता है मन
हरदम किसी की आशा
क्यों चाहता है दिल
हरदम किसी को पास
क्यों एकाएक
कोई चेहरा
अच्छा लगता है
क्यों एकाएक
कोई दिल
सच्चा लगने लगता है
क्यों उतर जाता है कोई
दिल की गहराइयों में
क्यों कूकती है कोयल
मन की अमराईयों में
क्यों लगता है कि किसी पर
अपना सारा मन उडेल दूँ
किसी पर
सारा जहान बिखेर दूँ !





Thursday, March 6, 2008



प्यार भरी ग़ज़लों का खजाना आपके लिए सिर्फ़ ''यादों की किताब'' पर



ये प्रेम कभी न रुका है
व्यथा है, एक कथा है, प्रेम की सदैव यही प्र‍था है,
वर्ष बीते अनेक किंतु प्रेम बलिदान ने इतिहास रचा है,
प्रीत रीत उस भले मानस की,आज भी प्रेरणास्त्रोत उंचा है,
कितने राजे आये,प्रेम पंरपरा न डिगा पाये,

कोयल सी इस कूक को, गीदड़बग्घी से न उरा पाये,
कष्ट, पीड़ा की न सीमा,पर न कोई इसे मिटा पाये,
प्रेम दिवस है नाम दिया, संत ने जीवनदान दिया,

पाठ पढ़ाया, प्रेम बिना न कोई जीवन,
प्रेमपथ रोड़ा उस मृत्यु को भी सम्मान दिया,
व्यथा है, एक कथा है, प्रेम की सदैव यही प्र‍था है,

कभी रुप वेलेंटांइस, कभी जन मानस ब्यार,
बहती गंगा मानिंद ये प्रेम कभी न रुका है !!

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तन्हाई यूँ ढूँढ़ती है मुझे


तन्हाई यूँ ढूँढ़ती है मुझे
जैसे मेरी सदा तुम्हें
जो दीवारें ख़ुद-ब-ख़ुद गिरती हैं
मैं कैसे चुनावाऊँ उन्हें


मैं बद से बदतर हुआ जाता हूँ
याद कर-करके तुम्हें
ख़िज़ाँ भी ख़ुशरंग हुई जाती है
खुष्क पत्ते पहने-पहने


शाम कितनी हसीन हो जाती है
पहने के रात के गहने
ऐसी शाम भी सादी लगती है मुझे
यह दर्द क्या पता तुम्हें


अब तो खुष्क पत्तों पर
ओस की तरह जीता हूँ…

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तेरी तस्वीर से बातें करता


तेरी तस्वीर से बातें करता रोज़ मैं
पास मेरे जो तेरी कोई तस्वीर होती
तुम्हें प्यार बेइंतिहाँ प्यार करता मैं
पास जो जानाँ मेरे आज तुम होती


देखो न! यह मेरी कैसी तक़दीर है
न तुम हो न तुम्हारी कोई तस्वीर है
दिन-रात तेरा ग़म ही ग़म है मुझे
सीने में साँसों की टूटी हुई ज़ंजीर है


तुमसे जुदा तो ख़ुद से जुदा रहता हूँ
सच्चे दिल से तुम्हें प्यार करता हूँ
न मर सकता हूँ मैं, न जी सकता हूँ
मैं तो सिर्फ़ तुम्हें ही चाह सकता हूँ


देखो न! यह कैसी मेरी तक़दीर है
न तुम हो न तुम्हारी कोई तस्वीर है


मैं तेरी चाहत रखता हूँ राहें तकता हूँ
थोड़ा सौदाई, थोड़ा दीवाना लगता हूँ
क़िस्मत की लकीरों में सिर्फ़ तुम हो
मैं रात और दिन तेरा नाम रटता हूँ


दिन-रात तेरा ग़म ही ग़म है मुझे
सीने में साँसों की टूटी हुई ज़ंजीर है

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मेरा दीवाना दिल धड़कता है


मेरा दीवाना दिल धड़कता है, तेरे लिए
पल-पल चोरी-चोरी तड़पता है, तेरे लिए
जीता है तेरे लिए, मरता है तेरे लिए


सामने तेरा आना, शरमाना, नज़रें चुराना
उफ़! तेरी हर तिरछी क़ातिल अदा पर
मेरा फ़िदा हो जाना, कुछ न कह पाना


इस तरह ऐसे हाल में कब तक जियूँगा
तेरे क़रीब होकर भी दूर कब तक रहूँगा
मेरा आँखों से कहना, तेरा आँखों से पढ़ना
बड़ा मुश्किल है, दूर रहना, सब सहना


मेरा दीवाना दिल धड़कता है, तेरे लिए
पल-पल चोरी-चोरी तड़पता है, तेरे लिए
जीता है तेरे लिए, मरता है तेरे लिए


मेरी रूह को सुकूँ दे, जीने को कोई जुनूँ दे
प्यार मुश्किल, तन्हाई हासिल न बना
मेरा दिल चाँद है, चाँदनी की तलाश है
हाँ कह भी दे तू दिल के आस-पास है


सामने तेरा आना, शरमाना, नज़रें चुराना
उफ़! तेरी हर तिरछी क़ातिल अदा पर
मेरा फ़िदा हो जाना, कुछ न कह पाना


मेरी आशिक़ी हद पार कर जायेगी
यह जान जायेगी, गर तू मुझे आज़मायेगी
सामने से गुज़रते हो, और सब जानते हो
बता भी दो मेरी जान, तू कब चाहेगी


मेरा दीवाना दिल धड़कता है, तेरे लिए
पल-पल चोरी-चोरी तड़पता है, तेरे लिए
जीता है तेरे लिए, मरता है तेरे लिए !


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’

लेखन वर्ष: ०६ मई २००३

Wednesday, March 5, 2008


इल्ज़ाम जमाने के हम तो हँस के सहेंगे


इल्ज़ाम जमाने के हम तो हँस के सहेंगे

खामोश रहे हैं ये लब खामोश रहेंगे
तुमने शुरू किया तमाम तुम ही करोगे

हम दिल का मामला ना सरेआम करेंगे
हम बदमिज़ाज ही सही दिल के बुरे नहीं

दिल के बुरे हैं जो हमें बदनाम करेंगे
बदनाम करके हमको बड़ा काम करोगे

शायद जहां में ऊँचा अपना नाम करोगे
हर दाम पे 'सागर ' उन्हें तो नाम चाहिए

अच्छे से ना मिला तो बुरा काम करेंगे !



ग़ज़ल


एक ऐसी भी घड़ी आती है

जिस्म से रूह बिछुड़ जाती है
अब यहाँ कैसे रोशन होती

ना कोई दीया, ना बाती है
हो लिखी जिनके मुकद्दर में खिजां

कोई रितु उन्हें ना भाती

ना कोई रूत ना भाये है मौसम

चांदनी रात दिल दुखाती है
एक अर्से से खुद में खोए हो

याद किसकी तुम्हें सताती है!




कच्चा-पक्का मकान था अपना

फिर भी कुछ तो निशान था अपना
अपना तुमको समझ लिया हमने

तुम भी लेते समझ हमें अपना
वो भी गैरों‍-सी बात करने लगे

जिनके होंठों पे नाम था अपना
है पीपल ना पेड़ बेरी का

ये शहर है, वो गांव था अपना
इससे आगे तो रास्ता ही नहीं

शायद ये ही मुकाम था अपना!


----- sanjay sen sagar

Tuesday, March 4, 2008



रात भर आँसू से जो लिखी गई ,

सुबह उस कहानी का

सौदा हुआ !

आरजू का आरजू से रिश्ता ही क्या ,

तुम किसी के हुए मैं किसी का हुआ !

देखिये कब कोई पढने वाला मिले ,

मैं हूँ अपने ही बजूद पर लिखा हुआ ,

प्यार का वो सफर हूँ जिसको 'सागर '

एक ही बादल

मिला

वो भी बरसा हुआ !


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वो शाम फिर आ गई

जो तेरी याद दिलाती है

जो ढलते सूरज के साथ

तेरे अहसास की रौशनी लाती है

दूर हिमालय पर जब

सूरज धरती की गोद मैं समां जाता हैं

अहसास तेरा दिल को चुराकर

मेरे रोम रोम मैं समां जाता है

तू नही हैं अब

जानता हूँ पर मान न सका कभी

पल पल तू याद आती है

तुझे न भुला सका कभी

रोज आती है वो शाम

दिल पर दस्तक देती हैं

गम के बदल घिर आते है फिर

और तेरी याद आंसू बनकर बह जाती है !

Monday, March 3, 2008


प्यार की परिभाषा


प्यार को कभी भी किया नहीं जा सकता। प्यार तो अपने आप हो जाता है। दिन और रात... धरती और आसमान, एक दूसरे के बिना सब अधूरे हैं। सन -सन करती हवाएं, सुन्दर नजारे, फूलों की खुशबू ... सभी में छिपा होता है प्यार... कुछ तो प्यार में हारकर भी जीत जाते हैं, तो कुछ जीतकर भी अपना प्यार हार जाते हैं। प्यार एक ऐसा नशा है जिसमें जो डूबता है वो ही पार होता है। प्यार पर किसी का वश नहीं होता.... अगर आप भी प्यार महसूस करना चाहते हैं तो डूबिये किसी के प्यार में ... दुनिया की सबसे बड़ी नेमत है ढाई आखर का प्यार... जब आप भी किसी को चाहने लगते हैं तो उसके दूर होने पर भी आपको नजदीक होने का अहसास होने लगता है , हर चेहरे में आप उसका चेहरा ढूंढने की असफल कोशिश करते हैं, कोई पल ऐसा न गुजरता होगा जब उसका नाम आपके होठों पर न रहता हो ... यही तो होता है प्यार... सुन्दर, सुखद , निश्छल और पवित्र अहसास। पूरी दुनिया के सुख इस प्रेम में समाए हुए हैं। यह शब्द छोटा होते हुए भी सभी शब्दों में बड़ा महसूस होता है। केवल इतना सा अहसास मात्र ही आपको तरंगित कर देगा कि मैं उससे प्यार करता या करती हू

इश्क मैं इल्जाम उठाना जरुरी है !
सफ़र के बाद अफ़साने ज़रूरी हैं ना भूल पाए वो दीवाने ज़रूरी हैं
जिन आँखों में हँसी का धोखा हो उन के मोती चुराने ज़रूरी हैं
माना के तबाह किया उसने मुझे , मगर रिश्ते निबाहने ज़रूरी हैं
ज़ख़्म दिल के नासूर ना बन जाए मरहम इन पे लगाने ज़रूरी हैं
माना वो ज़िंदगी हैं मेरी लेकिन , पर दूर रहने के बहाने ज़रूरी हैं
इश्क़ बंदगी भी हो जाए, कम हैं, इश्क़ में इल्ज़ाम उठाने ज़रूरी हैं
महफ़िल में रंग ज़माने के लिए , दर्द के गीत गुन-गुनाने ज़रूरी है
रात रोशन हुई जिनसे ,सारी , सुबह वो चिराग बुझाने ज़रूरी

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जिन्दगी मौत और हम ।


जिन्दगी में क्या है तन्हा ,

जिन्दगी मौत और हम ।
दुनिया में क्या है बेवजह ,

जिन्दगी मौत और हम ।
दुनिया में क्या है बिखरा ,

जिन्दगी मौत और हम ।
दुनिया में क्या है अपना ,

जिन्दगी मौत और हम ।
दुनिया में क्या है बुरा ,

जिन्दगी मौत और हम ।
दुनिया में क्या है उलझा ,

जिन्दगी मौत और हम ।

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कुछ पन्नों को छोड के अब


कुछ पन्नों को छोड के अब मुझको लिखना होगा ।

यंकी है मुझको , तुमको जा के फिर वापस आना होगा ।।
आयेगा जब जाकर के तू , आयेगा जब जाकर के तू ,

कितना कुछ होगा जो , तुझको मुझसे केहना होगा ।
लिख लुँगा मैं अपनी बातें पन्नों पर ही सारी ,

आकर तुझको मेरी बातें पन्नों से ही सुनना होगा ।
तुझ बिन जीवन , जान बिना कैसे बीता ,

मुझको जीना और तुझको बस सुनना होगा ।
साथ रहे बरसों हम , अब दूर भी रह कर देंखें ,

दूरी आने से रिश्ता ये , गहरा और गहरा होगा ।
छुटे हुए पन्नों की बातें पास तुम्हारे जा बैठी है ,

आते में लेते आना ,पन्नों पे फिर लिखना होगा ।

hemjyotsana

इनकी और अधिक ग़ज़ल और कविता के लिए

http://hemjyotsana.wordpress.com


ग़ज़ल (1)


आँख उनसे मिली तो सजल हो गई
प्यार बढने लगा तो गजल हो गई

रोज कहते हैं आऊँगा आते नहीं
उनके आने की सुनके विकल हो गई

ख्वाब में वो जब मेरे करीब आ गये
ख्वाब में छू लिया तो कँवल हो गई

फिर मोहब्बत की तोहमत मुझ पै लगी
मुझको ऐसा लगा बेदखल हो गई

वक्त का आईना है लवों के सिफर
लव पै मैं आई तो गंगाजल हो गई

'तारा' की शाइरी किसी का दिल हो गई
खुशबुओं से तर हर्फ फसल हो गई !



ग़ज़ल (2)


मेरी आँखों में किरदार नजर आता है
रँगे फलक यार का दीदार नजर आता है

पर्वत जैसी रात कटी कैसे पूछो मत
आसमाँ फूलों का तरफदार नजर आता है

सर्द पवन पहले लगता था मुझे गुलाबी
अब तो सनका-सा फनकार नजर आता है

माँगे भीख नहीं छीनो जो चाहे ले लो
यह कहना हमको दमदार नजर आता है

तुमसे बिछड़ी भूल हो गई 'तारा' की
उनका चेहरा सपनों में हर बार नजर आता है

हृदय मिले तो मिलते रहना अच्छा है
वक्त के संग - संग चलते रहना अच्छा है

गम का दरिया अगर जिन्दगी को समझो
धार के संग - संग बहते रहना अच्छा है

खुदा मदद करता उनकी जो खुद की करते
हिम्मत से खुद बढते रहना अच्छा है

अगर विश्व है, मंदिर-मस्जिद के अधीन
नियमित मंत्रों का जपते रहना अच्छा है

ठीक नहीं नजरों का फासला 'तारा' से
चाँद अंजुरी में उगते रहना अच्छा है



ग़ज़ल (3)
भीड़ भरी सड़कें सूनी - सी लगती है
दूरी दर्पण से दुगनी सी लगती है

मेरे घर में पहले जैसा सब कुछ है
फिर भी कोई चीज गुमी सी लगती है

शब्द तुम्हीं हो मेरे गीतों , छन्दों के
गजल लिखूँ तो मुझे कमी सी लगती है

रिश्ता क्या है नहीं जानती मै तुमसे
तुम्हें देखकर पलक झुकी सी लगती है

सिवा तुम्हारे दिल नहीं छूता कोई शै
बिना तुम्हारे बीरानी सी लगती है

चाँद धरा की इश्कपरस्ती के मानिंद
मुझको दीवानी लगती है !
------

अहसास
सब कुछ तो खो गया है, क्या पास रह गया है
तुम साथ हो, यह झूठा अहसास रह गया है
फिर से कभी मिलेंगे दिल तोड़कर गये जो
तो नहीं पर विश्वास रह गया है
उनका भी दोष क्या हम थे न उनके काबिल
सोचकर हमारा सब रंज बह गया है
हाथों से फिसले लम्हे, फिर किसको मिल सके हैं
जाती हवा का झोंका,चुपके से कह गया है।



।। ग़ज़ल ।।

ख़यालों का आइना


सूर्ख़ उन्वां लिए मिला काग़ज़
ख़ून से तर-ब-तर हुआ काग़ज़

दूर परदेस में था वो लेकिन
बन गया उसका राबता काग़ज़

जब न कह पाए कुछ लबे ख़ामोश
उसकी नज़रों ने फिर लिखा काग़ज़

मेरे आँगन में आके पुरवाई
ले उड़ी मेरे गीत का काग़ज़

अक्स हर सोच का पड़ा उस पर
है ख़यालों का आइना काग़ज़

बर्फ के टीले आग की दरिया
नाव काग़ज़ की नाख़ुदा काग़ज़

ज़िंदगी भर रहा कोई प्यासा
'शेरी' कोरा ही रह गया काग़ज़ !!



ज़िंदगी का निचोड़


यूँ तो हर शाम पे इक मोड़ मिला
दिल किसी से मगर न जोड़ मिला

ऐ ग़मे-यार ! हम तेरी ख़ातिर
छोड़ आये उसे, जो छोड़ मिला

हार थक कर ख़ुदा को मान लिया
मौत का जब न कोई तोड़ मिला

माँगने का भी है एक मेयार
लाख चाहा, मगर करोड़ मिला

दुश्मनों की कमी नहीं है 'ख़याल'
ज़िंदगी का यही निचोड़ मिला !



अपना घर आया


दूर से दरिया समन्‍दर सा लगा
जब करीब आया तो क़तरा सा लगा

ढूँढता फिरता था जो औरों के दाग़,
उसका ख़ुद किरदार मैला सा लगा

इस कदर मसरूफ़ राहों में रहे
अपना घर आया तो मंज़िल सा लगा

खुश्‍बुओं की क्‍या किसी से दुश्‍मनी
छू गईं जिसको वो महका सा लगा

कितनी पाक़ीज़ा ज़ुबां उसको मिली
झूठ भी बोला तो सच्‍चा सा लगा

वो हमारे शहर का सुकरात था
विष का प्‍याला जिसको अमृत सा लगा

तुम न थे तो पत्‍थरों का ढेर था
आ गए तुम तो ये घर, घर सा लगा

किसको हाले दिल सुनाते हम 'नवीन',
जो मिला, ग़म उसका अपना सा लगा !



रंग-बिरंगे लोग


कितने रंग-बिरंगे लोग
मोटे-ताज़े-चंगे लोग

झूठ-घृणा का ज़हर वमन कर
करवाते नित दंगे लोग

क्या थे क्या आज हुए क्या
बेशऊर बेढंगे लोग

बन वज़ीर कुर्सी पर बैठे
लुच्चे और लफ़ंगे लोग

किसको फुर्सत सोचे उनकी
जो हैं भूखे-नंगे लोग

जाने राम कौन-सी मंशा
खोदें रोज़ सुरंगे लोग


एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बच्चों में नई प्रेरणा का संचार करने के लिए अपनी खास शैली में डा। कलाम ने एक कविता सुनाई।

उसका एक अंश :-


वादा रहा …।

मैं संजोऊंगा वह हौसला की

सोचूंगा कुछ अलग

वैसे नहीं जैसे सब सोचा करते है


उन राहों पर जिन्होंने

अब तक नहीं देखे हैं कदमों के निशां

वह शै जिसका नाम है नामुमकिन

उसके चेहरे से घूंघट उठाऊंगा


लड़ूंगा मुसीबतों से

और पछाड़ूंगा उन्हें

कामयाब होने का हौसला होगा मुझमें


हिम्मत है जवानी की निशानी

और मैं हूं जवान

इस जवानी के बूते
इस हौसले के सहारे

मैं सतत चला रहूंगा
की मेरा देश बन छू सके

समृद्ध के शिखर।


डा एपीजे अब्दुल कलाम