Wednesday, February 27, 2008




Tuesday, February 26, 2008


















खेत उदास हैं

चिड़िया उदास है -
जंगल के खालीपन पर
बच्चे उदास हैं -
भव्य अट्टालिकाओं के
खिड़की-दरवाज़ों में कील की तरह
ठुकी चिड़िया की उदासी पर

खेत उदास हैं -
भरपूर फसल के बाद भी
सिर पर तसला रखे हरिया
चढ़-उतर रहा है एक-एक सीढ़ी
ऊँची उठती दीवार पर

लड़की उदास है -
कब तक छिपाकर रखेगी जन्मतिथि

किराये के हाथ
लिख रहे हैं दीवारों पर
'उदास होना
भारतीयता के खिलाफ़ है !'
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एक असंवैधानिक कविता

हमें चाहिए अपने हिस्से की स्वतंत्रता
हमें चाहिए अपने हिस्से की समानता
उससे पेशतर विश्व में मनुष्यता में
कि हमें चाहिए अपने हिस्से का सुख
हमें चाहिए अपने हिस्से का जीवन
महाजीवन में
मालूम है हमें
कि भद्रजनों आदी नहीं हैं आप
ऐसे सत्र से
हाँ, कविता नहीं है
हमारे संघर्ष का घोषणा-

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ज़िदंगी में सपने कौन नहीं देखता...और फिर उन्‍हीं सपनों को सच करना एक ख्‍वाब से बढ़कर कुछ नहीं होता, तब तक जब तक कोई आपको प्रोत्‍साहित नहीं करता। जी हाँ, मैं दोस्‍तों की बात कर रही हूँ. मैंने एक सपना देखा है अपनी कविता की एक किताब...जो के मैं अपने मित्रों और निकटजनों की सहायता से और आप सभी साथियों के आशि॔वाद से नये साल की फरवरी महीने की चौदह तारिख तक पबलिश करने का प्रयत्‍न कर रही हूँ. आशा है मुझे आप सभी का सहयोग प्राप्‍त होगा...


ज़िंदगी में एक ख्‍वाब


मैंने भी बुना है


मन ही मन कुछ सिला


है पुरे होने की आरजू़ है


लेकिन साथ मेरा कोई दे॥!?!


इसी की आकाँशा है!


दोस्‍तों का साथ हो बडों का आशि॔वाद हो !


मेरे सपनों की बुनी एक किताब


कहो! है न मेरे सर पर आपका हाथ?




पहाडों पर बारिश
पहाड़ों पर बारिश
ऐसे होती है
जैसे किसी लाड़ली की
उसके बाबुल के घर से
बिदाई
दहाड़ती
पेड़ों को पछाड़ती
पहाड़ी हवा
और पीटती बारिश
जैसे नगाड़ों पर बूंदें
नृत्य कर रही हो


आज की रात
आज की रात
पतझर की आख़िरी रात है
देखो
किस तरह
उलझ गया है चाँद
गुलमोहर की
सूखी टहनियों के बीच
कल बसंत की
पहली सुबह होगी
कल चाँद
हरे कोपलों के बीच
नाचेगा








दर्द का सागर हूँ




इस अजनबी सी दुनिया में,


अकेला इक ख्वाब हूँ।सवालों से खफ़ा, चोट सा जवाब हूँ।


जो ना समझ सके, उनके लिये "कौन"।


जो समझ चुके, उनके लिये किताब हूँ।


दुनिया कि नज़रों में, जाने क्युं चुभा सा।


सबसे नशीला और बदनाम शराब हूँ।


सर उठा के देखो, वो देख रहा है तुमको।


जिसको न देखा उसने, वो चमकता आफ़ताब हूँ।


आँखों से देखोगे, तो खुश मुझे पाओगे।


दिल से पूछोगे, तो दर्द का सैलाब हूँ.







तोता सीख गया है हवेलियों की जुबान
हवेली ने
उस उड़ते हुए
तोते को कैद कर लिया है
या तोते ने
हवेली की उड़ान को
शहर में सन्नाटा छा जाता है
तोते की बोली से
तोता सीख गया है
हवेलियों की जुबान
जलायी गई औरत की चीख
उस पर बरसाये गए
कोड़ों की आवाज़
तोता यदा-कदा रटने लगता है
कब की मर चुकी
ज़िंदा जलती
उस औरत की चीख-पुकार
और लोग दौड़ पड़ते हैं
उस हवेली की ओर
कि फिर कहीं
कोई औरत.......


सज़ा
उस बंद शीसी में
शायद
हवा का दम
घुट रहा है
जी चाहता है
उसे आज़ाद कर दूँ
और उसकी जगह
उसमें भर दूँ
अपना दर्द
दे दूँ उसे
उम्र-कैद की
सज़ा




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तुझे भूलने की कोशिश में,

जब दिल ये ज़िद पे आ गया,

मैं आँख मूँद के बैठ गयी,

तू ख़याल पे फिर छा गया…
ये धड़कन कहीं रुक जाए ना,

मेरी नब्ज़ ठहर ना जाए कहीं,

तूने वक़्त किया मेरा लम्हा लम्हा,

मगर मौत को आसान बना गया…
मेरी हर दलील को किया अनसुनी,

मेरी फ़रियाद भी तो सुनी नहीं,

मैं हैरान हूँ, हाँ कुछ परेशान हूँ,

ऐसा फ़ैसला तू मुझे सुना गया…
मुझे चाँद की कभी तलब ना थी,

मुझे सूरज की भी फ़िक्र नहीं,

बस आँख खोलना ही चाहते थे हम,

मगर तू रोशनी ही बुझा गया….
बेशक भूलना तुझे चाहा बहुत,

हँस कर कभी, रो कर कभी,

दे कर ये आँसुओं की सौगात मुझे,

तू दामन अपना बचा गया….
*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*


मासूम मोहब्बत का बस इतना फ़साना है
कागज की हवेली है बारिश का ज़माना है
क्या शर्ते मोहब्बत है क्या शर्ते फ़साना है
आवाज़ भी ज़ख़्मी है गीत भी गाना है
उस पार उतारने की उम्मीद बहुत कम है
कश्ती भी पुरानी है तूफ़ान को भी आना है
समझे या ना समझे वोह अंदाज़े मोहब्बत के,
एक शक्स को आँखों से हाल-ए-दिल सुनना है
मोहब्बत का बस इतना ही फ़साना है
एक आग का दरिया है और डूब कर जाना है!!


एस.एम.एस.

अब नहीं लिखते वो खत
करने लगे हैं एस.एम.एस
तोड़ मरोड़ कर लिखे शब्दों के साथ
करते हैं खुशी का इजहार
मिटा देता है हर नया एस.एम.एस
पिछले एस.एम.एस.का वजूद
एस.एम.एस के साथ ही
शब्द छोटे होते गए
भावनाएँ सिमटती गईं
खो गयी सहेज कर रखने की परम्परा
लघु होता गया सब कुछ
रिश्तों की कद्र का अहसास भी।


सिमटता आदमी

सिमट रहा है आदमी
हर रोज अपने में
भूल जाता है भावनाओं की कद्र
हर नयी सुविधा और तकनीक
घर में सजाने के चक्कर में
देखता है दुनिया को
टी. व्ही. चैनल की निगाहों से
महसूस करता है फूलों की खुशबू
कागज़ी फूलों में
पर नहीं देखता
पास-पड़ोस का समाज
कैद कर दिया है
बेटे को भी
चहारदीवारियों में
भागने लगा है समाज से
चौंक उठता है
कॉलबेल की हर आवाज़ पर
मानो
खड़ी हो गयी हो
कोई अवांछित वस्तु
दरवाजे पर आकर।



लड़की

न जाने कितनी बार
टूटी है वो टुकड़ों-टुकड़ों में

हर किसी को देखती
याचना की निगाहों से
एक बार तो हाँ कहकर देखो
कोई कोर कसर नहीं रखूँगी
तुम्हारी ज़िंदगी संवारने में

पर सब बेकार
कोई उसके रंग को निहारता
तो कोई लम्बाई मापता
कोई उसे चलकर दिखाने को कहता
कोई साड़ी और सूट पहनकर बुलाता

पर कोई नहीं देखता
उसकी ऑंखों में
जहाँ प्यार है, अनुराग है
लज्जा है, विश्वास है।



ज़ख्म

ज़ख्म न दे मुझे और ज़ख्म न दे ,
ओ सनम बेवफा, मुझे और ज़ख्म न दे।
तुझे देखा, तुझे चाहा, तुझे अपनाया इस दिल ने,
चाँद सी इस सूरत में, पाया है जन्नत इस दिल ने,
किसी और का चेहरा अब ख्यालों में नहीं आता,
तसव्वुर में भी तेरा मासूम चेहरा यादें बन मुझे सताता।
ज़ख्म न दे मुझे और ज़ख्म न दे ,
ओ सनम बेवफा, मुझे और ज़ख्म न दे।
तोड़ कर इस शीशे-सा दिल को क्या तूने पाया,
मुहब्बत की राह में फूलों की जगह यों काँटों को बिछाया,
मंजिल बहुत दूर है ओ यारा, तुझे यह क्यों समझ नहीं आया,
तेरे बगैर ओ जानेमन, इक पल भी मुझे चैन नहीं आया।
ज़ख्म न दे मुझे और ज़ख्म न दे ,
ओ सनम बेवफा, मुझे और ज़ख्म न दे
ज़ख्म का दर्द वही समझे जिसने ज़ख्म है खाया,
ज़ख्म देते वक्त तुझे, क्या इस आशिक पर तरस नहीं आया,
ज़ख्म की वजह से जिन्दगी बेदर्द लगने लगी है,
ज़ख्म सहते-सहते मुहब्बत की नूर शायद बुझने लगी है।
ज़ख्म न दे मुझे और ज़ख्म न दे ,
ओ सनम बेवफा, मुझे और ज़ख्म न दे
सिनसिला ये ज़ख्मों का अब और सहा नहीं जाता,
तेरी गलियों से गुजरने को अब और जी नहीं करता,
तझे कभी न अब मिलूँगा, किसी और से न ऐसी बेवफाई कर,
खुदा का तुझे है वास्ता, इस ज़ख्मी को और ज़ख्मी न कर।
ज़ख्म न दे मुझे और ज़ख्म न दे ,
ओ सनम बेवफा, मुझे और ज़ख्म न दे
-----------------

मैं मजदूर हूं
तड़प रहा हैं दिल, ठहर रही हैं सांसें।
नहीं रोक सकता पर कदमों को
मैं बड़ा मजबूर हूं क्योंकि
आज इस जन्म में
मैं इक मजदूर हूं।
लाख बनायें आशियां, लाख बनायें मंदिर
फिर भी इस पावन घरा पर
सोने को मजबूर हूं ।
क्योंकि मैं इक लाचार और गरीब सा
मजदूर हूं।
खूब उगाई फसलें हमने, खूब बहाई नहरें
फिर भी दर्द भूख का सहने
को मजबूर हूं।
क्योंकि आज इस जन्म में
मैं इक मजदूर हूं।
नहीं मुस्कुरा सकता हूं मैं, ना बहा
सकता हूं आंसू।
मैं हर पल इसी तरह
घुट घुटकर जीने को मजबूर हूं
क्योंकि आज की इस
अमीर दुनिया में, सिर्फ
मैं इक मजदूर हूं।
......................

Monday, February 25, 2008


मां तुम कहां हो
मां मुझे तेरा चेहरा याद आता है
वो तेरा सीने से लगाना,
आंचल में सुलाना याद आता है।
क्यों तुम मुझसे दूर गई,
किस बात पर तुम रूठी हो,
मैं तो झट से हंस देता था।
पर तुम तो
अब तक रूठी हो।
रोता है हर पल दिल मेरा,
तेरे खो जाने के बाद,
गिरते हैं हर लम्हा आंसू ,
तेरे सो जाने के बाद।
मां तेरी वो प्यारी सी लोरी ,
अब तक दिल में भीनी है।
इस दुनिया में न कुछ अपना,
सब पत्थर दिल बसते हैं,
एक तू ही सत्य की मूरत थी,
तू भी तो अब खोई है।
आ जाओ न अब सताओ,
दिल सहम सा जाता है,
अंधेरी सी रात में
मां तेरा चेहरा नजर आता है।
आ जाओ बस एक बार मां
अब ना तुम्हें सताउंगा,
चाहे निकले
जान मेरी अब ना तुम्हें रूलाउंगा।
आ जाओ ना मां तुम,
मेरा दम निकल सा जाता है।
हर लम्हा इसी तरह ,
मां मुझे तेरा चेहरा याद आता है।
-------------------.
वो बूढ़ी सी अम्मा
गोरी से पीली
पीली से काली हो गई हैं अम्मा
इक दिन मैंने देखा
सचमुच बूढ़ी हो गई है अम्मा।
कुछ बादल बेटे ने लूटे
कुछ हरियाली बेटी ने
एक नदी थी
कहां खो गई रेती हो गई हैं अम्मा
देख लिया है सोना चांदी
जब से उसके बक्से में
तब से बेटों की नजरों
अच्छी हो गई हैं अम्मा।
कल तक अम्मा अम्मा कहते
फिरते थे जिसके पीछे
आज उन्हीं बच्चों के आगे
बच्ची हो गई है अम्मा।
घर के हर इक फर्द की आँखों में
दौलत का चश्मा हैं
सबको दिखता वक्त कीमती
सस्ती हो गई अम्मा।
बोझ समझते थे सब
भारी लगती थी लेकिन जब से
अपने सर का साया समझा
हल्की हो गई अम्मा।
---------------.
जरूरत तुम्हारी है
जम गयी है ओस गुलाब की पत्ती पर,
समां गई है तेरी याद इस दिल में ,
बिखरने लगे है यादों के पन्ने
तेरी प्यार की हवा से।
गिरने लगे है अश्क,
नम हो गई यादों की किताब,
सिसक रहा है हर लफ्ज ,जिसमें
समाई हैं ,जुदाई।
थम गया है सागर
खाने लगी है हवा कोने कोने से,
पत्थर हो गई है, साहिल की रेत
पानी से बिछड़कर।
सिमट-सा रहा है आसमां
बरस रहें है तारें तेजी से ज़मीं की ओर,
गले मिल रहे चांद और सूरज
एक लंबे अरसे के बाद।
बदल सकती है सारी कायनात,
मेरी इस नज्म की तरह ,
नहीं बदल सकता तो सिर्फ मेरा प्यार
जो है तुम्हारे लिए।
आ गया है प्यार का दिन ,
आ जाओ अब तुम भी ,
मेरी टूटती हर एक सांस को
जरूरत तुम्हारी है।
----------


वह टूटा पुल।
वह संकरा सा पुल अब भी टूटा है
अब भी लोग वहां से गिरते हैं।
अब भी लोग वहां मरते हैं।
अब भी बांटे जाते हैं
वीरता पुरस्कार - मरनें वालों
को बचाने में।
पर वह संकरा सा पुल अब भी टूटा है।
अस्त हो सकता है सूरज,
डूब सकता है चांद हमेशा के लिए
पर टूटा है और टूटा ही रहेगा
वह संकरा सा पुल।
बदल चुके कई सत्ताघारी,
शहीद हो चुके कई लोग
पर नहीं बदली तो हालत
उस संकरे पुल की ।
वह संकरा सा पुल अब भी टूटा है।
बड़े बड़े वादों से नाता है
उस पुल का।
अब तो कांप सी जाती है वादों
के भार से पुल की दीवारें।
टूट चुके वे सभी वादे जो जोड़ते थे
पुल को, आ गयी है उनमें दरारें
बिल्कुल पुल की तरह।
बदलेगी अभी अनेकों सरकारें,
बनेगी अभी एक और इबारत, नये वादों की
पर, वह संकरा सा पुल अब भी टूटा है
और सदा टूटा ही रहेगा
वह टूटा, संकरा पुल।
...................
वह मुझे मां कहता है।
वह अब भी मुझे मां कहता है।
सताता हैं रुलाता है
कभी कभी हाथ उठाता है पर
है वह मुझे मां कहता है।
मेरी बहू भी मुझे मां कहती हैं
उस सीढ़ी को देखो,मेरे पैर के
इस जख्म को देखो,
मेरी बहू मुझे
उस सीढ़ी से अक्सर गिराती है।
पर हाँ,वह मुझे मां कहती है।
मेरा छोटू भी बढिया हैं,जो मुझको
दादी मां कहता है,
सिखाया था ,कभी मां कहना उसको
अब वह मुझे डायन कहता हैं
पर हाँ
कभी कभी गलती सें
वह अब भी मुझे मां कहता है।
मेरी गुड़िया रानी भी हैं ,जो मुझको
दादी मां कहती है
हो गई हैं अब कुछ समझदार
इसलिए बुढ़िया कहती हैं,
लेकिन हाँ
वह अब भी मुझे मां कहती है।
यही हैं मेरा छोटा सा संसार
जो रोज गिराता हैं
मेरे आंसू ,
रोज रुलाता हैं खून के आंसू
पर मैं बहुत खुश हूं, क्योंकि वे सभी
मुझे मां कहते है।
--------.
मैं और मेरा अलाव
सुनसान घर के सुनसान कमरे में
रहते है सिर्फ दो तन्हा लोग
इक में और इक मेरा अलाव।
जलते है दोनों
मैं जलता हूं तन्हाई में
तो वो जलता है सर्द हवाओं में!
करते है बातें कभी वफा की तो
कभी बेवफाई की।
कहता हैं तन्हा अलाव बड़ी मतलबी
है ये दुनिया, छोड़ जाती है
सर्द मौसम के बाद।
मैं कहता हूं
ना सर्दी,ना गर्मी,ना बरसात
यहाँ तो लोग छोड़ जाते
हर इक अपने मतलब
के बाद।
कहता हैं अलाव बेहद सताती है
दुनिया,ठंडी होती है
जब दिल की आग तो फिर
जलाती हैं दुनिया।
मैं कहता हूं
नहीं नहीं दो दिलों में जली
इश्क,मुहब्बत और प्यार की आग को
बुझाती है दुनिया।
कहता हैं तन्हा अलाव
वो उनकी यादें,वो उनका साथ
मुझे अक्सर याद आता है और अक्सर
तन्हाई में चुपके से रुलाता है।
मैं कहता हूं
हाँ हाँ आते तो हैं उनके ख्याल
पर ना वे मुझे सताते है ना रुलाते है
वे तो अजनबी की तरह दिल के दरवाजे
से ही लौट जाते है।
सुनसान घर के सुनसान कमरे में
करते है बातें।
कभी वफा की तो कभी बेवफाई की
दो तन्हा लोग
इक मैं और इक मेरा अलाव।
....................-
न जानूं कौन हूँ मै,
मै न जानूं कौन हूं मैं
लोग कहते हैं सबसे जुदा हूं मैं
मैंने तो प्यार सबसे किया
पर न जाने कितनों ने धोखा दिया।
चलते-चलते कितने ही अच्छे मिले,
जिनको बहुत प्यार दिया,
पर कुछ लोग समझ ना सके,
फिर भी मैंने सबसे प्यार किया।
दोस्तों की खुशी से ही खुशी है,
तेरे गम से हम दुखी है,
तुम हंसो तो खुश हो जाऊंगा।
तेरी आंखों में आंसू हो तो मनाऊँगा।
मेरे सपने बहुत बड़े हैं
पर अकेले हैं हम, अकेले हैं,
फिर भी चलता रहूंगा
मंजिल को पाकर रहूँगा।
ये दुनिया बदल जाए कितनी भी,
पर मैं न बदलूंगा,
जो बदल गये वो दोस्त थे मेरे
पर कोई न पास है मेरे।
प्यार होता तो क्या बात होती
कोई न कोई तो होगी कहीं न कहीं
शायद तुम से अच्छी या
कोई नहीं इस दुनिया में तुम्हारे जैसी।
आसमान को देखा है मैंने, मुझे जाना वहां है
जमीन पर चलना नहीं, मुझे जाना वहां है,
पता है गिरकर टूट जाऊँगा, फिर उठने का विश्वास है
मैं अलग बनकर दिखाऊँगा।
पता नहीं ये रास्ते ले जाएं कहां,
न जाने खत्म हो जाएं, किस पल कहां,
फिर भी तुम सब के दिलों में जिंदा रहूंगा,
यादों में सब की, याद आता रहूंगा।
................-

......................
कभी अलविदा न कहना
कभी याद आये तो, इक बार कहना
कभी सागर बनके इन आंखों से बहना
पर कभी किसी भी हाल में तुम
अलविदा न कहना।
तुम साथ रहो या जुदा रहो हर वक्त
मुझे याद करना, खुशी मिले या गम
मिले तुम्हें। पर कभी मुझसे
अलविदा न कहना
गुजरे पल जो साथ हमारे, याद उन्हें तुम
करना, लाख करे दुनिया रुसवाई, दिल में
ही हमको रखना। कभी भी हो यार पर
कभी अलविदा न कहना।
बिजली चमके या तूफां आये, हौसला तुम
रखना गर टूट जाओ जो तुम खुद से ही
तो सिर्फ आंख बंद बस करना, पर कभी
यार तुम अलविदा न कहना।
पूछे गर मेरे आंसू तो, उनको कुछ मत कहना
सवाल करें जब आंसू ही तेरे, ता मुझे
बेवफा कहना। कितना ही दूर रहँ मैं पर
कभी अलविदा न कहना।
टूट जाये जो सांस तुम्हारी, आस मुझ पर
रखना, सूख जाये जो लव तुम्हारे तो
बस सागर कहना। मर कर भी यार
तुम कभी अलविदा न कहना।
-----------------.
एक लड़की मुझे सताती है
अंधेरी सी रात में एक खिड़की
डगमगाती है
सच बताऊँ यारों, एक लड़की
मुझे सताती है।
भोली भाली सूरत उसकी
मखमली सी पलकें है
हल्की इस रोशनी में, मुझे
देख शर्माती है
सच बताऊँ यारों, इक लड़की
मुझे सताती है
बिखरी-बिखरी जुल्फें उसकी
शायद घटा बुलाती है, उसके
आंखों के काजल से बारिश
भी हो जाती है
दूर खड़ी वो खिड़की पर
मुझे देख मुस्कुराती है।
सच बताऊँ यारों, इक लड़की
मुझे सताती है
उसकी पायल की छम-छम से
एक मदहोशी सी छा जाती है
ज्यों की आंख बंद करुं मैं
तो, सामने वो जाती है
सच बताऊँ यारों, इक
लड़की मुझे सताती है
अंधेरी सी रात में एक खिड़की
डगमगाती है
ज्यों ही आंख खोलता हँ
मैं तो ख्वाब वो बन जाती है
रोज रात को इसी तरह
इक लड़की मुझे सताती है।
-----------------.
एक भोली सी गाय।
रोज सुबह खड़ी-खड़ी रंभाती है।
ऊँचे दरवाजों पर, नहीं चीर
पाती उसकी आवाज
बजते अश्लील संगीतों को।
थक हार कर लड़खड़ाते
कदमों से खोजती है
पेड़ों को, हरियाली को
बहती नदियों को।
पर नहीं मिलता उसको
ऐसा कोई निशां
पूछती है पता
कभी रोकर, तो कभी
रंभाकर
ढूंढती है उन रास्तों को
जो जाते हो उसके गांव
की ओर।
कोसती है
उस दिन को जब
बेचा गया था दलालों के
हाथ उसको।
याद करती है
गाँव में गुजरे, वे सुखद
पल।
पर नहीं मिले वे सुख
यहां, न ही मिले वे सुख
यहां, न ही मिलने
की आस है
रोज सुबह खड़ी-खड़ी रंभाती है
ऊँचे दरवाजों पर,
एक प्यारी, भोली-सी गाय।
-------------------.
बापू तेरे प्यार में.
बापू तेरे प्यार में बहता था संसार
सत्य अहिंसा और धर्म का लगा था अंबार
लेकिन वो दिन लद गये
आज उनमें नेता बस गये।
बापू मेरे दुखी मत होना, ये तो रीत पुरानी हैं
किया भला जिसने उसने ही बुराई पाई है।
मेरी सदा यह याद रखना
अब ना होगा गाँधी ,
न नेहरू के दिन आयेंगे
अब तो वे दिन आये है
जब लालू ही पूजे जायेंगे।
दोष नहीं देता मैं बापू तुमको,
ये तो आपकी भलमनसाहत थी
तब भी भारत आपका था ,
आज भी आपकी अमानत हैं।
बापू तेरे कदमों में बिछता था, संसार
बुरा बोलना, बुरा देखना ,बुरा सुनना
था सब बेकार ।
अब उसूल बदल चुके हैं,
सब पश्चिम में ढल चुके हैं
बापू मेरे दुखी मत होना , ये तो रीत पुरानी हैं
पानी हुआ पुराना हैं सारी दुनिया शराब की दीवानी है।
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परिचय
संजय सेन सागर
जन्म 10 जुलाई 1988 म.प्र सागर
उपलब्धि
संजय सेन सागर की कहानी इक अजनबी को ब्राइटनेस पब्लिकेशन ऑफ दिल्ली की तरफ से राइस ऑफ राइटर अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।
यंग राइटर्स फाउंण्डेशन ऑफ इंडिया गुप्र के सदस्य
संपर्क:
ड़ाँ निशीकांत तिवारी के पीछे, आदर्श नगर ,मकरोनियाँ चौराहा, सागर
मध्यप्रदेश पिन 470004