Thursday, March 6, 2008



प्यार भरी ग़ज़लों का खजाना आपके लिए सिर्फ़ ''यादों की किताब'' पर



ये प्रेम कभी न रुका है
व्यथा है, एक कथा है, प्रेम की सदैव यही प्र‍था है,
वर्ष बीते अनेक किंतु प्रेम बलिदान ने इतिहास रचा है,
प्रीत रीत उस भले मानस की,आज भी प्रेरणास्त्रोत उंचा है,
कितने राजे आये,प्रेम पंरपरा न डिगा पाये,

कोयल सी इस कूक को, गीदड़बग्घी से न उरा पाये,
कष्ट, पीड़ा की न सीमा,पर न कोई इसे मिटा पाये,
प्रेम दिवस है नाम दिया, संत ने जीवनदान दिया,

पाठ पढ़ाया, प्रेम बिना न कोई जीवन,
प्रेमपथ रोड़ा उस मृत्यु को भी सम्मान दिया,
व्यथा है, एक कथा है, प्रेम की सदैव यही प्र‍था है,

कभी रुप वेलेंटांइस, कभी जन मानस ब्यार,
बहती गंगा मानिंद ये प्रेम कभी न रुका है !!

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तन्हाई यूँ ढूँढ़ती है मुझे


तन्हाई यूँ ढूँढ़ती है मुझे
जैसे मेरी सदा तुम्हें
जो दीवारें ख़ुद-ब-ख़ुद गिरती हैं
मैं कैसे चुनावाऊँ उन्हें


मैं बद से बदतर हुआ जाता हूँ
याद कर-करके तुम्हें
ख़िज़ाँ भी ख़ुशरंग हुई जाती है
खुष्क पत्ते पहने-पहने


शाम कितनी हसीन हो जाती है
पहने के रात के गहने
ऐसी शाम भी सादी लगती है मुझे
यह दर्द क्या पता तुम्हें


अब तो खुष्क पत्तों पर
ओस की तरह जीता हूँ…

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तेरी तस्वीर से बातें करता


तेरी तस्वीर से बातें करता रोज़ मैं
पास मेरे जो तेरी कोई तस्वीर होती
तुम्हें प्यार बेइंतिहाँ प्यार करता मैं
पास जो जानाँ मेरे आज तुम होती


देखो न! यह मेरी कैसी तक़दीर है
न तुम हो न तुम्हारी कोई तस्वीर है
दिन-रात तेरा ग़म ही ग़म है मुझे
सीने में साँसों की टूटी हुई ज़ंजीर है


तुमसे जुदा तो ख़ुद से जुदा रहता हूँ
सच्चे दिल से तुम्हें प्यार करता हूँ
न मर सकता हूँ मैं, न जी सकता हूँ
मैं तो सिर्फ़ तुम्हें ही चाह सकता हूँ


देखो न! यह कैसी मेरी तक़दीर है
न तुम हो न तुम्हारी कोई तस्वीर है


मैं तेरी चाहत रखता हूँ राहें तकता हूँ
थोड़ा सौदाई, थोड़ा दीवाना लगता हूँ
क़िस्मत की लकीरों में सिर्फ़ तुम हो
मैं रात और दिन तेरा नाम रटता हूँ


दिन-रात तेरा ग़म ही ग़म है मुझे
सीने में साँसों की टूटी हुई ज़ंजीर है

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मेरा दीवाना दिल धड़कता है


मेरा दीवाना दिल धड़कता है, तेरे लिए
पल-पल चोरी-चोरी तड़पता है, तेरे लिए
जीता है तेरे लिए, मरता है तेरे लिए


सामने तेरा आना, शरमाना, नज़रें चुराना
उफ़! तेरी हर तिरछी क़ातिल अदा पर
मेरा फ़िदा हो जाना, कुछ न कह पाना


इस तरह ऐसे हाल में कब तक जियूँगा
तेरे क़रीब होकर भी दूर कब तक रहूँगा
मेरा आँखों से कहना, तेरा आँखों से पढ़ना
बड़ा मुश्किल है, दूर रहना, सब सहना


मेरा दीवाना दिल धड़कता है, तेरे लिए
पल-पल चोरी-चोरी तड़पता है, तेरे लिए
जीता है तेरे लिए, मरता है तेरे लिए


मेरी रूह को सुकूँ दे, जीने को कोई जुनूँ दे
प्यार मुश्किल, तन्हाई हासिल न बना
मेरा दिल चाँद है, चाँदनी की तलाश है
हाँ कह भी दे तू दिल के आस-पास है


सामने तेरा आना, शरमाना, नज़रें चुराना
उफ़! तेरी हर तिरछी क़ातिल अदा पर
मेरा फ़िदा हो जाना, कुछ न कह पाना


मेरी आशिक़ी हद पार कर जायेगी
यह जान जायेगी, गर तू मुझे आज़मायेगी
सामने से गुज़रते हो, और सब जानते हो
बता भी दो मेरी जान, तू कब चाहेगी


मेरा दीवाना दिल धड़कता है, तेरे लिए
पल-पल चोरी-चोरी तड़पता है, तेरे लिए
जीता है तेरे लिए, मरता है तेरे लिए !


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’

लेखन वर्ष: ०६ मई २००३