
इल्ज़ाम जमाने के हम तो हँस के सहेंगे
इल्ज़ाम जमाने के हम तो हँस के सहेंगे
खामोश रहे हैं ये लब खामोश रहेंगे
तुमने शुरू किया तमाम तुम ही करोगे
तुमने शुरू किया तमाम तुम ही करोगे
हम दिल का मामला ना सरेआम करेंगे
हम बदमिज़ाज ही सही दिल के बुरे नहीं
हम बदमिज़ाज ही सही दिल के बुरे नहीं
दिल के बुरे हैं जो हमें बदनाम करेंगे
बदनाम करके हमको बड़ा काम करोगे
बदनाम करके हमको बड़ा काम करोगे
शायद जहां में ऊँचा अपना नाम करोगे
हर दाम पे 'सागर ' उन्हें तो नाम चाहिए
हर दाम पे 'सागर ' उन्हें तो नाम चाहिए
अच्छे से ना मिला तो बुरा काम करेंगे !
ग़ज़ल
एक ऐसी भी घड़ी आती है
जिस्म से रूह बिछुड़ जाती है
अब यहाँ कैसे रोशन होती
अब यहाँ कैसे रोशन होती
ना कोई दीया, ना बाती है
हो लिखी जिनके मुकद्दर में खिजां
हो लिखी जिनके मुकद्दर में खिजां
कोई रितु उन्हें ना भाती
ना कोई रूत ना भाये है मौसम
चांदनी रात दिल दुखाती है
एक अर्से से खुद में खोए हो
एक अर्से से खुद में खोए हो
याद किसकी तुम्हें सताती है!
कच्चा-पक्का मकान था अपना
फिर भी कुछ तो निशान था अपना
अपना तुमको समझ लिया हमने
अपना तुमको समझ लिया हमने
तुम भी लेते समझ हमें अपना
वो भी गैरों-सी बात करने लगे
वो भी गैरों-सी बात करने लगे
जिनके होंठों पे नाम था अपना
है पीपल ना पेड़ बेरी का
है पीपल ना पेड़ बेरी का
ये शहर है, वो गांव था अपना
इससे आगे तो रास्ता ही नहीं
इससे आगे तो रास्ता ही नहीं
शायद ये ही मुकाम था अपना!
----- sanjay sen sagar
1 comment:
doston aapke liye hi hain yah poem aur gazalon ka khazana to ho jao suru!!
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