Tuesday, February 26, 2008



पहाडों पर बारिश
पहाड़ों पर बारिश
ऐसे होती है
जैसे किसी लाड़ली की
उसके बाबुल के घर से
बिदाई
दहाड़ती
पेड़ों को पछाड़ती
पहाड़ी हवा
और पीटती बारिश
जैसे नगाड़ों पर बूंदें
नृत्य कर रही हो


आज की रात
आज की रात
पतझर की आख़िरी रात है
देखो
किस तरह
उलझ गया है चाँद
गुलमोहर की
सूखी टहनियों के बीच
कल बसंत की
पहली सुबह होगी
कल चाँद
हरे कोपलों के बीच
नाचेगा








दर्द का सागर हूँ




इस अजनबी सी दुनिया में,


अकेला इक ख्वाब हूँ।सवालों से खफ़ा, चोट सा जवाब हूँ।


जो ना समझ सके, उनके लिये "कौन"।


जो समझ चुके, उनके लिये किताब हूँ।


दुनिया कि नज़रों में, जाने क्युं चुभा सा।


सबसे नशीला और बदनाम शराब हूँ।


सर उठा के देखो, वो देख रहा है तुमको।


जिसको न देखा उसने, वो चमकता आफ़ताब हूँ।


आँखों से देखोगे, तो खुश मुझे पाओगे।


दिल से पूछोगे, तो दर्द का सैलाब हूँ.







तोता सीख गया है हवेलियों की जुबान
हवेली ने
उस उड़ते हुए
तोते को कैद कर लिया है
या तोते ने
हवेली की उड़ान को
शहर में सन्नाटा छा जाता है
तोते की बोली से
तोता सीख गया है
हवेलियों की जुबान
जलायी गई औरत की चीख
उस पर बरसाये गए
कोड़ों की आवाज़
तोता यदा-कदा रटने लगता है
कब की मर चुकी
ज़िंदा जलती
उस औरत की चीख-पुकार
और लोग दौड़ पड़ते हैं
उस हवेली की ओर
कि फिर कहीं
कोई औरत.......


सज़ा
उस बंद शीसी में
शायद
हवा का दम
घुट रहा है
जी चाहता है
उसे आज़ाद कर दूँ
और उसकी जगह
उसमें भर दूँ
अपना दर्द
दे दूँ उसे
उम्र-कैद की
सज़ा




-------------------------------------------------------------------------------------------------

तुझे भूलने की कोशिश में,

जब दिल ये ज़िद पे आ गया,

मैं आँख मूँद के बैठ गयी,

तू ख़याल पे फिर छा गया…
ये धड़कन कहीं रुक जाए ना,

मेरी नब्ज़ ठहर ना जाए कहीं,

तूने वक़्त किया मेरा लम्हा लम्हा,

मगर मौत को आसान बना गया…
मेरी हर दलील को किया अनसुनी,

मेरी फ़रियाद भी तो सुनी नहीं,

मैं हैरान हूँ, हाँ कुछ परेशान हूँ,

ऐसा फ़ैसला तू मुझे सुना गया…
मुझे चाँद की कभी तलब ना थी,

मुझे सूरज की भी फ़िक्र नहीं,

बस आँख खोलना ही चाहते थे हम,

मगर तू रोशनी ही बुझा गया….
बेशक भूलना तुझे चाहा बहुत,

हँस कर कभी, रो कर कभी,

दे कर ये आँसुओं की सौगात मुझे,

तू दामन अपना बचा गया….
*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*


No comments: