
पहाडों पर बारिश
पहाड़ों पर बारिश
ऐसे होती है
जैसे किसी लाड़ली की
उसके बाबुल के घर से
बिदाई
दहाड़ती
पेड़ों को पछाड़ती
पहाड़ी हवा
और पीटती बारिश
जैसे नगाड़ों पर बूंदें
नृत्य कर रही हो
आज की रात
आज की रात
पतझर की आख़िरी रात है
देखो
किस तरह
उलझ गया है चाँद
गुलमोहर की
सूखी टहनियों के बीच
कल बसंत की
पहली सुबह होगी
कल चाँद
हरे कोपलों के बीच
नाचेगा
दर्द का सागर हूँ
इस अजनबी सी दुनिया में,
अकेला इक ख्वाब हूँ।सवालों से खफ़ा, चोट सा जवाब हूँ।
जो ना समझ सके, उनके लिये "कौन"।
जो समझ चुके, उनके लिये किताब हूँ।
दुनिया कि नज़रों में, जाने क्युं चुभा सा।
सबसे नशीला और बदनाम शराब हूँ।
सर उठा के देखो, वो देख रहा है तुमको।
जिसको न देखा उसने, वो चमकता आफ़ताब हूँ।
आँखों से देखोगे, तो खुश मुझे पाओगे।
दिल से पूछोगे, तो दर्द का सैलाब हूँ.
तोता सीख गया है हवेलियों की जुबान
हवेली ने
उस उड़ते हुए
तोते को कैद कर लिया है
या तोते ने
हवेली की उड़ान को
शहर में सन्नाटा छा जाता है
तोते की बोली से
तोता सीख गया है
हवेलियों की जुबान
जलायी गई औरत की चीख
उस पर बरसाये गए
कोड़ों की आवाज़
तोता यदा-कदा रटने लगता है
कब की मर चुकी
ज़िंदा जलती
उस औरत की चीख-पुकार
और लोग दौड़ पड़ते हैं
उस हवेली की ओर
कि फिर कहीं
कोई औरत.......
सज़ा
उस बंद शीसी में
शायद
हवा का दम
घुट रहा है
जी चाहता है
उसे आज़ाद कर दूँ
और उसकी जगह
उसमें भर दूँ
अपना दर्द
दे दूँ उसे
उम्र-कैद की
सज़ा
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ये धड़कन कहीं रुक जाए ना,
मेरी हर दलील को किया अनसुनी,
मुझे चाँद की कभी तलब ना थी,
बेशक भूलना तुझे चाहा बहुत,
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