
ग़ज़ल (1)
आँख उनसे मिली तो सजल हो गई
प्यार बढने लगा तो गजल हो गई
रोज कहते हैं आऊँगा आते नहीं
उनके आने की सुनके विकल हो गई
ख्वाब में वो जब मेरे करीब आ गये
ख्वाब में छू लिया तो कँवल हो गई
फिर मोहब्बत की तोहमत मुझ पै लगी
मुझको ऐसा लगा बेदखल हो गई
वक्त का आईना है लवों के सिफर
लव पै मैं आई तो गंगाजल हो गई
'तारा' की शाइरी किसी का दिल हो गई
खुशबुओं से तर हर्फ फसल हो गई !
प्यार बढने लगा तो गजल हो गई
रोज कहते हैं आऊँगा आते नहीं
उनके आने की सुनके विकल हो गई
ख्वाब में वो जब मेरे करीब आ गये
ख्वाब में छू लिया तो कँवल हो गई
फिर मोहब्बत की तोहमत मुझ पै लगी
मुझको ऐसा लगा बेदखल हो गई
वक्त का आईना है लवों के सिफर
लव पै मैं आई तो गंगाजल हो गई
'तारा' की शाइरी किसी का दिल हो गई
खुशबुओं से तर हर्फ फसल हो गई !
ग़ज़ल (2)
मेरी आँखों में किरदार नजर आता है
रँगे फलक यार का दीदार नजर आता है
पर्वत जैसी रात कटी कैसे पूछो मत
आसमाँ फूलों का तरफदार नजर आता है
सर्द पवन पहले लगता था मुझे गुलाबी
अब तो सनका-सा फनकार नजर आता है
माँगे भीख नहीं छीनो जो चाहे ले लो
यह कहना हमको दमदार नजर आता है
तुमसे बिछड़ी भूल हो गई 'तारा' की
उनका चेहरा सपनों में हर बार नजर आता है
हृदय मिले तो मिलते रहना अच्छा है
वक्त के संग - संग चलते रहना अच्छा है
गम का दरिया अगर जिन्दगी को समझो
धार के संग - संग बहते रहना अच्छा है
खुदा मदद करता उनकी जो खुद की करते
हिम्मत से खुद बढते रहना अच्छा है
अगर विश्व है, मंदिर-मस्जिद के अधीन
नियमित मंत्रों का जपते रहना अच्छा है
ठीक नहीं नजरों का फासला 'तारा' से
चाँद अंजुरी में उगते रहना अच्छा है
ग़ज़ल (3)
भीड़ भरी सड़कें सूनी - सी लगती है
दूरी दर्पण से दुगनी सी लगती है
मेरे घर में पहले जैसा सब कुछ है
फिर भी कोई चीज गुमी सी लगती है
शब्द तुम्हीं हो मेरे गीतों , छन्दों के
गजल लिखूँ तो मुझे कमी सी लगती है
रिश्ता क्या है नहीं जानती मै तुमसे
तुम्हें देखकर पलक झुकी सी लगती है
सिवा तुम्हारे दिल नहीं छूता कोई शै
बिना तुम्हारे बीरानी सी लगती है
चाँद धरा की इश्कपरस्ती के मानिंद
मुझको दीवानी लगती है !
------
भीड़ भरी सड़कें सूनी - सी लगती है
दूरी दर्पण से दुगनी सी लगती है
मेरे घर में पहले जैसा सब कुछ है
फिर भी कोई चीज गुमी सी लगती है
शब्द तुम्हीं हो मेरे गीतों , छन्दों के
गजल लिखूँ तो मुझे कमी सी लगती है
रिश्ता क्या है नहीं जानती मै तुमसे
तुम्हें देखकर पलक झुकी सी लगती है
सिवा तुम्हारे दिल नहीं छूता कोई शै
बिना तुम्हारे बीरानी सी लगती है
चाँद धरा की इश्कपरस्ती के मानिंद
मुझको दीवानी लगती है !
------
No comments:
Post a Comment