Monday, March 3, 2008


एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बच्चों में नई प्रेरणा का संचार करने के लिए अपनी खास शैली में डा। कलाम ने एक कविता सुनाई।

उसका एक अंश :-


वादा रहा …।

मैं संजोऊंगा वह हौसला की

सोचूंगा कुछ अलग

वैसे नहीं जैसे सब सोचा करते है


उन राहों पर जिन्होंने

अब तक नहीं देखे हैं कदमों के निशां

वह शै जिसका नाम है नामुमकिन

उसके चेहरे से घूंघट उठाऊंगा


लड़ूंगा मुसीबतों से

और पछाड़ूंगा उन्हें

कामयाब होने का हौसला होगा मुझमें


हिम्मत है जवानी की निशानी

और मैं हूं जवान

इस जवानी के बूते
इस हौसले के सहारे

मैं सतत चला रहूंगा
की मेरा देश बन छू सके

समृद्ध के शिखर।


डा एपीजे अब्दुल कलाम



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