
एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बच्चों में नई प्रेरणा का संचार करने के लिए अपनी खास शैली में डा। कलाम ने एक कविता सुनाई।
उसका एक अंश :-
वादा रहा …।
मैं संजोऊंगा वह हौसला की
सोचूंगा कुछ अलग
वैसे नहीं जैसे सब सोचा करते है
उन राहों पर जिन्होंने
अब तक नहीं देखे हैं कदमों के निशां
वह शै जिसका नाम है नामुमकिन
उसके चेहरे से घूंघट उठाऊंगा
लड़ूंगा मुसीबतों से
और पछाड़ूंगा उन्हें
कामयाब होने का हौसला होगा मुझमें
हिम्मत है जवानी की निशानी
और मैं हूं जवान
इस जवानी के बूते
इस हौसले के सहारे
इस हौसले के सहारे
मैं सतत चला रहूंगा
की मेरा देश बन छू सके
की मेरा देश बन छू सके
समृद्ध के शिखर।
डा एपीजे अब्दुल कलाम
No comments:
Post a Comment