Friday, March 7, 2008


।। जड़ें ।।


जड़ें चमक रही हैं
ढेले खुश
घास को पता है
चीटियों के प्रजनन का समय
क़रीब आ रहा है

दिन-भर की तपिश के बाद
ताज़ा पिसा हुआ गरम-गरम आटा
एक बूढ़े आदमी के कंधे पर बैठकर
लौट रहा है घर

मटमैलापन अब भी
जूझ रहा है
कि पृथ्वी के विनाश की ख़बरों के ख़िलाफ़
अपने होने की सारी ताक़त के साथ
सटा रहे पृथ्वी से ।

--------------------------------------------


।। मैं ज़िंदगी हूँ ।।


मैं लाश नहीं हूँ
जो तैरता रहूँ ऊपर ही ऊपर ही पानी पर
मैं ज़िंदगी हूँ
अतल गहराईयों में जाऊँगा
सीप से मोती निकाल लाऊँगा

मैं तिनका नहीं हूँ
जो उलझ जाऊँ किसी चोर की दाढ़ी में
मैं गरीब की बीड़ी का लुक हूँ
हवाओं में उडूँगा
शोषकों की बस्ती में
आग लगाऊँगा !


--------------------------------------


।। शायद प्यार के कारण ।।

क्यों करता है मन
हरदम किसी की आशा
क्यों चाहता है दिल
हरदम किसी को पास
क्यों एकाएक
कोई चेहरा
अच्छा लगता है
क्यों एकाएक
कोई दिल
सच्चा लगने लगता है
क्यों उतर जाता है कोई
दिल की गहराइयों में
क्यों कूकती है कोयल
मन की अमराईयों में
क्यों लगता है कि किसी पर
अपना सारा मन उडेल दूँ
किसी पर
सारा जहान बिखेर दूँ !





No comments: