
आप के लिए मेरी [संजय सेन सागर] की कुछ और अनमोल गजल
अहसास
सब कुछ तो खो गया है, क्या पास रह गया है
सब कुछ तो खो गया है, क्या पास रह गया है
तुम साथ हो, यह झूठा अहसास रह गया है
फिर से कभी मिलेंगे दिल तोड़कर गये जो
फिर से कभी मिलेंगे दिल तोड़कर गये जो
उम्मीद तो नहीं पर विश्वास रह गया है
उनका भी दोष क्या हम थे न उनके काबिल
यह सोचकर हमारा सब रंज बह गया है
हाथों से फिसले लम्हे, फिर किसको मिल सके हैं
उनका भी दोष क्या हम थे न उनके काबिल
यह सोचकर हमारा सब रंज बह गया है
हाथों से फिसले लम्हे, फिर किसको मिल सके हैं
जाती हवा का झोंका,चुपके से कह गया है।!
------------------------------------------------------
गजल...!
कभी ह॑से कभी मुस्करा हम दिये !
यू॑ ही खता उनकी, भुला हम दिये !
अपने पैरो पर भरोसा है बहुत !
इसलिये हर कन्धा, ठुकरा हम दिये !!
सच, दोस्तो का मोहताज नही है !
यही सोच, कदम, बढा हम दिये !!
सोच-सोच कर अब आ रही है ह॑सी !
क्यो अन्धो को आइना, दिखा हम दिये !!
दर्द ही मिला था विरासत मे दोस्तो !
कुछ उभर आये, कुछ दबा हम दिये !!
'सागर ’ ने दी थी आग, हवन की खातिर !
जलने लगे जब घर, तो बुझा हम दिये !!
-----------------------------------------------
गजल !
हर शहर मे भीड हर गा॑व वीरान है !
बाप गा॑व मे, बेटा शहर मे परेशान है !!
वो शख्श जो फ़टेहाल, भूखा ऒर न॑गा है !
कोई ऒर नही अपने ही देश का किसान है !!
ही ख्वाहिशे जल कर भस्म हुई !
हर दिल मे कही ना कही, कोई शमशान है !!
कोई वजह है, जो चुप रहा करते है !
वरना वो गू॑गे नही उनके भी जुबान है !!
वो बच्चा रो रो कर सोया है अभी !
देखो उसके माथे पर चोट का निशान है !!
'सागर ’ अब चल फ़िर कर ऒर कही देखे !
बहुत बडी दुनिया बहुत बडा जहान है !!
No comments:
Post a Comment